मोटापे को न सिर्फ एक दर्जन से अधिक प्रकार के कैंसर के जोखिम को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है बल्कि अगर किसी व्यक्ति को कैंसर हो जाए और वह मोटापे का शिकार हो तो उस व्यक्ति में बीमारी की पहचान सही तरीके से नहीं हो पाती और उसके जीवित बचने की संभावना भी कम हो जाती है। बीते कई सालों में वैज्ञानिकों ने मोटापे से जुड़ी उन प्रक्रियाओं की पहचान की है जो कैंसर से जुड़े ट्यूमर को बढ़ाने का काम करते हैं जैसे - मेटाबॉलिज्म से जुड़े बदलाव और शरीर में लंबे समय तक बनी रहने वाली अंदरूनी सूजन और जलन (इन्फ्लेमेशन) की समस्या। लेकिन मोटापा और कैंसर एक दूसरे पर क्या और कैसा प्रभाव डालते हैं इसकी विस्तृत जानकारी पकड़ में नहीं आ पा रही थी।
(और पढ़ें - मोटापा घटाने के घरेलू उपाय)
चूहों पर हुई स्टडी में नई बातों का हुआ खुलासा
लेकिन अब अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में चूहों पर एक स्टडी हुई है जिसमें अनुसंधानकर्ताओं ने इस अनसुलझी पहेली के नए टुकड़े का खुलासा किया है जिसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी के लिए आश्चर्यजनक अनुमान सामने आया है। स्टडी में बताया गया है कि ईंधन की इस लड़ाई में मोटापा, कैंसर कोशिकाओं को बढ़ावा देता है जिससे वे ट्यूमर को मारने वाली इम्यून कोशिकाओं को हरा देते हैं।
(और पढ़ें - ट्यूमर और कैंसर में क्या अंतर है)
हाई फैट डाइट से टी कोशिकाओं की ऐक्टिविटी में होती है कमी
सेल नाम के जर्नल में 9 दिसंबर को प्रकाशित हुई इस स्टडी में शामिल रिसर्च टीम ने बताया कि हाई फैट डाइट का सेवन करने से सीडी8+टी कोशिकाओं की संख्या और उनकी एंटी-ट्यूमर गतिविधियां कम हो जाती हैं। (सीडी8+टी कोशिकाएं, ट्यूमर के अंदर मौजूद एक बेहद अहम इम्यून कोशिकाएं होती हैं) ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कैंसर कोशिकाएं फैट की बढ़ोतरी के प्रतिक्रिया स्वरुप अपने मेटाबॉलिज्म में बदलाव करती हैं ताकि वे ऊर्जा से भरपूर फैट मॉलिक्यूल्स को बेहतर तरीके से निगल पाएं। कैंसर कोशिकाओं के ऐसा करने से टी सेल्स के लिए ईंधन की कमी हो जाती है और ट्यूमर का विकास तेजी से बढ़ने लगता है।
एक ही थेरेपी सभी लोगों के लिए प्रभावी हो ऐसा जरूरी नहीं
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में सेल बायोलॉजी की प्रोफेसर और इस स्टडी की को-सीनियर ऑथर मार्सिया हेगिस कहती हैं, "अगर उसी सेम ट्यूमर को मोटापे से ग्रस्त और बिना मोटापे वाले व्यक्ति के शरीर में रखा जाए तो इससे पता चलता है कि हाई फैट डाइट के प्रतिक्रिया स्वरूप कैंसर कोशिकाएं अपने मेटाबॉलिज्म को नए तरीके से स्थापित करती हैं। इस खोज से पता चलता है कि एक थेरेपी जो संभवतः एक हालात या व्यक्ति में काम करती है, वह हो सकता है कि दूसरे में उतनी प्रभावी न हो। लिहाजा हमारे समाज में मौजूदा समय में मोटापा, जो कि एक महामारी का रूप लेता जा रहा है उसे बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।"
(और पढ़ें - कैंसर में क्या खाना चाहिए)
फैट से जुड़े मेटाबॉलिज्म में होने वाले बदलाव को रोकने की जरूरत
रिसर्च टीम ने पाया कि कैंसर कोशिकाएं अपने फैट से जुड़े मेटाबॉलिज्म में जो बदलाव करती हैं अगर उसे रोक दिया जाए तो हाई फैट डाइट वाले चूहों में भी ट्यूमर के वॉल्यूम में कमी हो सकती है। कैंसर के खिलाफ इम्यून सिस्टम को सक्रिय करने के लिए जिस इम्यूनोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है उनका प्रमुख हथियार ही सीडी8+टी कोशिकाएं हैं। लिहाजा स्टडी के नतीजे यह सुझाव देते हैं कि इस तरह की थेरेपीज में सुधार करने के लिए बेहतर रणनीति बनाने की जरूरत है। स्टडी की एक और को-सीनियर ऑथर आर्लीन शार्पे कहती हैं, "कैंसर इम्यूनोथेरेपीज मरीज के जीवन पर असाधारण असर डालती हैं लेकिन यह सभी लोगों के लिए फायदेमंद नहीं है। हम ये जानते हैं कि टी सेल्स और ट्यूमर सेल्स के बीच हमेशा ही एक मेटाबॉलिक खींचतान चलती रहती है जो मोटापे के कारण बदल जाती है। हमारी स्टडी एक रास्ता दिखा रही है ताकि हम कैंसर और मोटापे के बीच इस परस्पर क्रिया को और बेहतर तरीके से समझ पाएं।"
(और पढ़ें - इम्यूनिटी कम होने के लक्षण)
हाई फैट डाइट वाले चूहों में ट्यूमर का विकास तेजी से हुआ
स्टडी की ऑथर हेगिस और शार्पे और उनकी टीम ने कोलोरेक्टल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, मेलानोमा और लंग कैंसर जैसे कई अलग-अलग प्रकार के कैंसर पर मोटापे का क्या असर होता है यह देखने के लिए चूहों पर एक्सपेरिमेंट किया। इस दौरान टीम ने कुछ चूहों को नॉर्मल तो बाकियों को हाई फैट डाइट दिया। हाई फैट वाले चूहों का बॉडी वेट बढ गया और उनमें मोटापे से जुड़े बदलाव भी दिखने लगे। इसके बाद टीम ने अलग-अलग तरह के सेल्स के प्रकार और मॉलिक्यूल्स को देखा जो ट्यूमर के अंदर और उसके आसपास मौजूद थे। टीम ने पाया कि सामान्य डाइट लेने वाले चूहों की तुलना में हाई फैट डाइट वालों में ट्यूमर का विकास तेजी से हुआ।
सीडी 8+टी कोशिकाएं ही कैंसर कोशिकाओं को मारती हैं
इस तरह के प्रयोगों से पता चला कि ट्यूमर के विकास में डाइट संबंधी अंतर, सीडी 8+टी कोशिकाओं की गतिविधियों पर मुख्य रूप से निर्भर करता है। सीडी 8+टी कोशिकाओं वे इम्यून कोशिकाएं हैं जो कैंसर कोशिकाओं को टार्गेट करके उन्हें मार सकती हैं। अगर चूहों में प्रयोगात्मक रूप से सीडी 8+टी कोशिकाओं को समाप्त कर दिया गया तब डाइट ने ट्यूमर की वृद्धि दर को प्रभावित नहीं किया। स्टडी की को-ऑथर शार्पे कहती हैं, "कई आशाजनक कैंसर थेरेपीज का सेंट्रल फोकस सीडी 8+टी कोशिकाएं हैं जिसमें वैक्सीन और सेल थेरेपीज जैसे- सीएआर-टी शामिल है। इन थेरेपीज में कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए बेहद जरूरी है कि टी कोशिकाओं के पास पर्याप्त ऊर्जा हो लेकिन साथ ही साथ हम यह भी नहीं चाहते कि ट्यूमर को बढ़ने के लिए ईंधन मिले। लिहाजा अब हमारे पास एक व्यापक डेटा है जिसमें इस गतिशील और निर्धारण तंत्र का अध्ययन किया गया है जो टी कोशिकाओं को जिस तरह से कार्य करना चाहिए उन्हें करने से रोकता है।"