कैंसर जैसी घातक बीमारी ने हमारे समाज को बहुत हद तक प्रभावित किया है। नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में हर साल कैंसर से जुड़े लाखों नए मामले सामने आते हैं, जबकि इस खतरनाक बीमारी के चलते हजारों लोगों की मौत हो जाती है। वहीं, नए अध्ययन के जरिए शोधकर्ताओं ने पाया कि कैंसर के इलाज में एक महीने की देरी करने से मृत्यु का खतरा 10 फीसदी तक बढ़ सकता है। रिसर्च में यह भी बताया गया है कि अगर इलाज में इस देरी को कम किया जाता है तो कैंसर के मरीजों में जीवित रहने की दर में सुधार हो सकता है। इस स्टडी को स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका "द बीएमजे" जर्नल में प्रकाशित किया गया है। कनाडा की क्वीन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस रिसर्च की समीक्षा की है।
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कैसे की गई थी रिसर्च?
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया गया कि अगर कैंसर के किसी मरीज के उपचार में देरी होती है तो इससे मृत्यु दर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। फिर चाहे उपचार सर्जरी से जुड़ा हो, सिस्टेमिक थेरेपी (जैसे कि कीमोथेरेपी), या सात प्रकार के कैंसर के लिए की जाने वाली रेडियोथेरेपी से जुड़ा हो। दरअसल हमारे हेल्थ सिस्टम में ऐसी कई समस्याएं हैं जो वैश्विक स्तर पर कैंसर के इलाज में देरी का कारण बनती हैं और इन्हें पहले भी व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। इस तरह की देरी के कारण रोगी के परिणाम पर प्रतिकूल यानी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, इस दौरान इलाज में देरी से जुड़े सटीक प्रभावों का गहनता से विश्लेषण नहीं किया गया है जो कि बीमारी की जांच से लेकर मृत्यु दर से संबंधित है। इसलिए, कनाडा में क्वीन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने जनवरी 2000 और अप्रैल 2020 के बीच प्रकाशित इस विषय से जुड़े अध्ययनों की समीक्षा और विश्लेषण किया है।
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उपचार में चार हफ्ते की देरी से मृत्यु का जोखिम
इन अध्ययनों में सर्जिकल हस्तक्षेप, सिस्टेमिक थेरेपी (जैसे कीमोथेरेपी) या सात प्रकार के कैंसर के लिए की किए जाने वाली रेडियोथेरेपी पर आधारित एक डेटा मौजूदा है जिसमें मूत्राशय कैंसर, स्तन कैंसर, कोलन कैंसर समेत मलाशय, फेफड़े, गर्भाशय ग्रीवा और सिर व गर्दन के कैंसर से जुड़े आंकड़े शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर इन कैंसर से जुड़ी 44 प्रतिशत घटनाएं सामने आती है। शोधकर्ताओं ने निदान से लेकर पहले इलाज तक और एक इलाज खत्म होने से दूसरे इलाज के शुरू होने के बीच चार सप्ताह का अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने 17 प्रकार की स्थितियों के लिए 34 उपयुक्त अध्ययनों का विश्लेषण किया, जिनमें रोगियों को इलाज की जरूरत थी। इसमें सामूहिक रूप से 12 लाख (1.2 मिलियन) से अधिक रोगी शामिल थे। रिसर्च में 17 में से 13 परिस्थितियों में देरी से इलाज और मृत्यु दर में एक महत्वपूर्ण जुड़ाव के संकेत मिले।
रिसर्च से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है, "परिणामों के विश्लेषण से पता चला कि सभी तीन उपचार दृष्टिकोणों में, चार सप्ताह की देरी से मृत्यु के जोखिम में वृद्धि हुई।" सर्जरी के लिए, यह हर चार-सप्ताह के उपचार में देरी मृत्यु के जोखिम में 6-8 प्रतिशत की वृद्धि से जुड़ा था, जबकि रेडियोथेरेपी सिस्टेमिक ट्रीटमेंट के लिए यह प्रभाव और अधिक था। इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने हिसाब लगाया कि आठ सप्ताह और 12 सप्ताह तक की देरी से मृत्यु के जोखिम में और वृद्धि हुई। शोधकर्ता कहते हैं, "सभी तरह के कैंसर के इलाज में चार हफ्ते की देरी की वजह से मृत्युदर में बढ़ोतरी देखने को मिली और इससे जितनी ज्यादा देर की जाए बचने की उम्मीद उतनी ही कम होती चली जाती है"
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