एक्सरसाइज करने से कैंसर से लड़ने में मदद मिल सकती है। एक अध्ययन के मुताबिक, व्यायाम करने से शरीर के कुछ विशेष इम्यून सेल्स की भीतरी कार्यप्रणाली में बदलाव आते हैं, जो कैंसर के खिलाफ लड़ाई में मददगार हो सकते हैं। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चूहों पर किए प्रयोगों के बाद मिले परिणामों के आधार पर यह दावा किया है।
इस बारे में पहले से काफी पुख्ता सबूत हैं कि एक्सरसाइज अलग-अलग कैंसरों और उनसे मरने के खतरों को कम करने का काम करती है। मिसाल के लिए, 2016 में आई एक विस्तृत एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी के मुताबिक, शारीरिक रूप से ज्यादा एक्टिव रहने वालों लोगों में 13 अलग-अलग प्रकार के कैंसर होने का खतरा उन लोगों की अपेक्षा काफी कम होता है, जो फिजिकली काफी कम या न के बराबर एक्टिव होते हैं। दि न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी तरह का दावा पिछले साल आए एक अध्ययन में किया गया था। इस स्टडी की समीक्षा अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन ने की थी। संस्थान ने कहा था कि नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से कुछ विशेष प्रकार के कैंसर डेवलेप होने का खतरा 69 प्रतिशत तक कम हो जाता है। इसी विश्लेषण में यह भी बताया गया था कि व्यायाम कैंसर के इलाज में भी सुधार कर सकता है और पहले से कैंसर से पीड़ित लोगों का जीवनकाल बढ़ाने में मददगार हो सकता है।
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लेकिन यह अब तक साफ नहीं था कि वर्क आउट करने से (कैंसर) ट्यूमर पर कैसे प्रभाव पड़ता है। इस विषय पर की गई एनीमल आधारित स्टडीज कहती हैं कि एक्सरसाइज करने से इन्फ्लेमेशन कम होती है और शरीर के अंदरूनी माहौल में इस तरह की तब्दीली आती है कि कैंसर होने की स्थिति में अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आने की आशंका कम हो जाती है। हालांकि कैंसर और एक्सरसाइज के पारस्परिक प्रभाव की गुत्थी अब भी अनसुलजी ही थी।
यहां नए अध्ययन में एंट्री होती है श्वेत रक्त कोशिकाओं यानी वाइट ब्लड सेल्स की। हाल में स्वीडन स्थित कैरोलिन्स्का इंस्टीट्यूट और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों के शोधकर्ताओं ने मिलकर इम्यून सिस्टम की इन कोशिकाओं पर काम करना शुरू किया। यह पहले से ज्ञात है कि कई बीमारियों की श्वेत रक्त कोशिकाएं कैंसर से लड़ने में भी शरीर की मदद करती हैं। ये कैंसर सेल्स की पहचान, नेविगेट और अक्सर हानिकारक कोशिकाओं को खत्म भी करती हैं। शोधकर्ताओं के जानने में आया है कि अलग-अलग प्रकार की इम्यून सेल्स अलग-अलग प्रकार के कैंसर को टार्गेट करती हैं। लेकिन यह ज्ञात नहीं रहा है कि क्या व्यायाम का इन इम्यून सेल्स पर कोई प्रभाव पड़ता है। अगर ऐसा है तो क्या उससे कैंसर कम होने में किसी तरह की मदद मिलती है।
नया अध्ययन और इसके परिणाम इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने में मदद करते हैं। इसके लिए स्टडी में शामिल वैज्ञानिकों ने चूहों और रॉडेन्ट प्रजाति के कुछ अन्य जानवरों को अलग-अलग प्रकार के कैंसर सेल्स से इनोक्युलेट किया। चूहों में कैंसर सेल्स डालने के बाद उनमें से कुछ को दौड़ने के लिए उचित माहौल दिया गया। बाकी चूहों को निष्क्रिय माहौल दिया गया। कुछ हफ्तों बाद पता चला कि दौड़ने वाले कुछ चूहों में कैंसर ट्यूमर बढ़ने के मामूली सबूत मिले। यहां उल्लेखनीय है कि इन सक्रिय चूहों में से अधिकतर को ऐसे कैंसल सेल्स से इनोक्युलेट किया गया था, जो सीडी8+ टी सेल्स जैसे विशेष प्रकार के इम्यून सेल के प्रति खास तौर पर कमजोर होते हैं।
शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि शायद एक्सरसाइज (दौड़ने) से इन इम्यून सेल्स पर विशेष प्रभाव पड़ रहा था। इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने चूहों में इन टी सेल्स की कार्यप्रणाली को रासायनिक रूप से ब्लॉक कर दिया और उन्हें फिर दौड़ाया। कई हफ्तों तक फिजिकली एक्टिव रहने के बाद भी बिना सीडी8+ टी सेल्स के संचालन के इन जानवरों में ट्यूमर की ग्रोथ होती रही। इससे अनुमान लगाया गया कि एक्सरसाइज से कुछ कैंसरों को रोकने में इन कोशिकाओं के संचालन की अहम भूमिका हो सकती है। इस आधार पर उन्होंने एक्टिव और नॉन-एक्टिव दोनों समूहों के चूहों के शरीर से सीडी8+ टी सेल्स को आइसोलेट कर दिया। फिर निष्क्रिय रखे गए अन्य जानवरों में सीडी8+ और अन्य प्रकार के टी सेल्स इन्जेक्ट किए गए। इस प्रयोग से पता चला कि जिन जानवरों में दौड़ने वाले चूहों के इम्यून सेल्स डाले गए थे, उन्होंने कैंसर ट्यूमर के खिलाफ सक्रियता दिखाई थी, जबकि निष्क्रिय चूहों वाले इम्यून सेल्स से इन्जेक्ट किए गए जानवरों में यह प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत कम थी।
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इन परिणामों से वैज्ञानिकों में उत्साह है। अध्ययन का निरीक्षण करने वाले एक वैज्ञानिक और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में मॉलिक्यूलर फिजियोलॉजी के प्रोफेसर रैंडल जॉनसन का कहना है कि एक्सरसाइज से टी सेल्स पर पड़ने वाला प्रभाव वास्तविक और स्थिर है।
लेकिन क्या एक्सरसाइज यानी दौड़ने से इम्यून सेल्स पर यही प्रभाव पड़ रहा था, जिससे वे कैंसर ट्यूमर्स के खिलाफ ज्यादा प्रभावी बनें। इस सवाल का जवाब जानने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ चूहों को तब तक दौड़ाया, जब तक कि वे खुद थक कर ऐसा करना छोड़ न दें। बाकी को बिना किसी गतिविधि के रखा गया। इसके बाद दोनों समूहों के चूहों के रक्त के नमूने लिए गए और उन्हें आधुनिक मशीन में डाला गया, जो सैंपल में मौजूद सभी मॉलिक्यूल को नोट करते हुए उनकी गिनती करती है। यहां पता चला कि दौड़ने वाले चूहों के खून के नमूनों में ऐसे तत्वों की संख्या काफी ज्यादा थी, जिन्हें फ्यूलिंग और मेटाबॉलिज्म की जरूरत थी। इनमें लैक्टेट का लेवल विशेष रूप से काफी ज्यादा था। यह सब्सटेंस मांसपेशी के काम करने (या कहें एक्सरसाइज करने) पर प्रोड्यूस होता है।
इस आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि शायद लैक्टेट ही दौड़ने वाले चूहों के टी सेल्स को प्रभावित कर रहा था। इसलिए उन्होंने चूहों से आइसोलेट किए गए सीडी8+ टी सेल्स में लैक्टेट की मात्रा बढ़ा दी और उन्हें लैब में विकसित होने दिया। इस दौरान कैंसर सेल्स से इंटरेक्ट कराने पर मालूम हुआ कि ये कोशिकाएं ट्यूमर के खिलाफ अन्य टी सेल्स की अपेक्षा ज्यादा एक्टिव हैं। मूल बात यह कि लैक्टेट के साथ मैरिनेट (मिलाने) करने से कैंसर से लड़ने की इन सेल्स की क्षमता बढ़ गई थी। इस पर डॉ. जॉनसन ने कहा, 'आसान भाषा में कहें तो हमारे अध्ययन से पता चला है कि एक्सरसाइज करने से टी सेल्स की क्षमता बढ़ती है।'
यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि अध्ययन में किए गए सभी प्रयोग चूहों पर थे, न कि इन्सानों पर। हालांकि इन्सान भी एक्सरसाइज करने पर अतिरिक्त लैक्टेट और उससे मिलते मॉलिक्यूल प्रोड्यूस करते हैं। लेकिन यह अभी सुनिश्चित नहीं है कि इस तरह का वर्क आउट करने से हमारे सीडी8+ सेल्स भी बिल्कुल उसी तरह रेस्पॉन्ड करेंगे, जैसा कि चूहों के मामले में देखने को मिला। इसके अलावा, यह भी साफ नहीं हुआ है कि क्या सभी प्रकार के व्यायाम करने से टी सेल्स पर समान प्रभाव पड़ता है या कुछ विशेष प्रकार की एक्सरसाइज कोशिकाओं की ताकत बढ़ाने में ज्यादा फायदेमंद हैं। साथ ही, यह भी जानना बाकी है कि क्या एक्सरसाइज करने से कैंसर का खतरा कम होता है और केवल इन कोशिकाओं की क्षमता बढ़ने से इस बीमारी का बढ़ना रुक सकता है। इस पर डॉ. जॉनसन का कहना है कि इन तमाम सवालों और विषयों पर वे और उनके सहयोगी और अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं।
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