कैंसर का इलाज ढूंढने में लगे वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे कैंसर सेल्स को 'सुना' जा सकता है। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका 'नेचर मेथड्स' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस तकनीक की मदद से अब यह जानने में मदद मिलेगी कि कैंसरकारी सेल्स आखिर कैसे एक-दूसरे से संपर्क स्थापित करते हैं। इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिक आशावान हैं कि इस तकनीक की मदद से कैंसर के इलाज में आने वाली दिक्कतों को कम किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि इससे इलाज को एक बेहतर दिशा मिलेगी। रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्ताओं ने मास स्पेक्ट्रोमेट्री से जुड़ी इस तकनीक को 'मास साइटोमेट्री' नाम दिया है।
(और पढ़ें- आंत के कैंसर के कारण और लक्षण)
रिसर्च में शामिल अध्ययनकर्ताओं की मानें तो साइटोमेट्री से जुड़े शोध के बाद कैंसर के ट्यूमर के प्रभाव का पता चला है। इसके बाद अब कैंसर के इलाज से जुड़ी अधिक प्रभावी दवाओं को बनाने में सहायता मिल सकती है और डॉक्टरों द्वारा कैंसर के मरीज को व्यक्तिगत रूप से बेहतर उपचार दिया जा सकेगा।
कैसे किया अध्ययन?
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने मास साइटोमेट्री के रूप में एक 'जटिल' तकनीक को विकसित किया है। मास स्पेक्ट्रोमेट्री के तहत तैयार की गई यह तकनीक प्रोटीन मोलेक्यूलस (अणुओं) का पता लगाने और उनका विश्लेषण करने के काम आती है। इसे प्रयोग में लाने के लिए वैज्ञानिकों ने पहले लैब में ऑर्गनॉइड्स विकसित किए। ऑर्गनॉइड्स मानव शरीर की मूल कोशिकाओं से निकाले जाते हैं, इसलिए ये जीवाणु कोशिकाओं जैसा ही व्यवहार करते हैं। इनकी मदद से शरीर में कैंसर के विकास को पहचानने में मदद मिलती है।
ऑर्गनॉइड्स विकसित करने के बाद वैज्ञानिकों ने साइटोमेट्री तकनीक में कुछ बदलाव किए। यह तकनीक शरीर में प्रोटीन मॉलिक्यूल को पहचानने और उनका विश्लेषण करने में काम आती है। साइटोमेट्री में बदलाव करने के बाद ऑर्गनॉइड्स को अलग-अलग सेल्स में तोड़ दिया गया। इसके बाद उनमें रोग-प्रतिकारक प्रोटीनों और धातुओं में पाए जाने वाले अणुओं (मेटल ऐटम) को मिलाया गया। फिर वैज्ञानिकों ने कोशिकाओं को पतले कोहरे जैसा आवरण देने के लिए उन्हें निबुलाइजर में डाल दिया और उनमें मिलाए गए धात्विक अणुओं को विद्युत से जलाया ताकि उससे पैदा हुई मैग्नेटिक फील्ड (चुंबकीय क्षेत्र) की मदद से अलग-अलग सिग्नल दे रहे मॉलिक्यूलों को एक-दूसरे से अलग किया जा सके।
शोधकर्ताओं ने कहा है कि अभी यह तकनीक थोड़ी जटिल है और अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन आने वाले समय में इससे कैंसर से जुड़ी लाखों कोशिकाओं का व्यक्तिगत रूप से विश्लेषण करने में मदद मिलेगी। मिसाल के लिए इस तकनीक के जरिये शोधकर्ताओं ने जाना है कि कैसे कैंसर सेल्स, स्वास्थ्य कोशिकाओं के संकेतों की नकल कर अपना रूप बदलते हैं। आगे चल कर वैज्ञानिकों को यह समझने में भी मदद मिल सकती है कि कैंसर ट्यूमर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी सिस्टम) के घेरे को तोड़कर उपचार के दौरान प्रतिरोधी का काम कैसे करता है।
(और पढ़ें- अब लार से पहचाना जाएगा मुंह और गले का कैंसर)
विशेषज्ञों की राय
ब्रिटेन में कैंसर के अनुसंधान से संबंधित एक संस्थान में सूचना प्रबंधक डॉक्टर एमिली आर्मस्ट्रांग का कहना है कि इस तकनीक से कैंसर कोशिकाओं और अन्य प्रकार के सेल्स के बीच होने वाले जटिल संचार को बेहतर तरीके से समझने मदद मिलेगी। साथ ही, इन सेल्स को सुना भी जा सकेगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि उपचार के बाद कैंसर कैसे वापस आता है और शरीर में चारों ओर फैल जाता है।
(और पढ़ें- कैंसर का आयुर्वेदिक इलाज जानें)
कैंसर के इलाज में कितनी महत्वपूर्ण होगी नई तकनीक?
भले ही यह तकनीक अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है, लेकिन वैज्ञानिक इसे लेकर उत्साहित हैं और आगे की प्रक्रिया को अंजाम देने के बारे में विचार कर रहे हैं। अब सवाल बनाता है कि अगर इस तरह की नई टेक्नॉलजी विकसित हो जाती है तो कैंसर के इलाज में इसकी क्या भूमिका होगी।
(और पढ़ें- मुंह के कैंसर का ऑपरेशन कैसे होता है)
myUpchar से जुड़ीं डॉक्टर जैमसमीन कौर बताती हैं इसकी मदद से कैंसर पीड़ित व्यक्ति के सेल्स को अलग से लेकर यह पता लगाया जा सकता है कि पीड़ित के लिए कौन सा इलाज ज्यादा प्रभावशाली होगा। इससे उपचार एक बेहतर दिशा में होगा। साथ ही साथ पीड़ित व्यक्ति के समय से ठीक होने की संभावना भी बढ़ जाएगी।