कैंसर का नाम सुनते ही लोग इस बीमारी की गंभीरता का अंदाजा लगा लेते हैं। वो इसलिए क्योंकि कैंसर के चलते हर साल हजारों की संख्या में लोगों की मौत होती है। यही वजह है कि वैज्ञानिक कैंसर का प्रभावी इलाज खोजने की भरसक कोशिश में जुटे हैं। इसी प्रयास में शोधकर्ताओं ने पाया है कि एंटी-डिप्रेसेंट (anti-depressant) दवा "पैरोक्सेटाइन" कैंसर को बढ़ने से रोकने में सहायक हो सकती है। रिसर्च में बताया गया है कि यह दवा बचपन या किशोरावस्था में होने वाले कैंसर, जिसे सरकोमा कहा जाता है उसके इलाज में मदद कर सकती है।
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कैसे की गई रिसर्च?
यह रिसर्च स्वास्थ्य के क्षेत्र की प्रमुख पत्रिका "जर्नल कैंसर रिसर्च" में प्रकाशित की गई है, जिसमें एंटी-डिप्रेसेंट दवा के लाभकारी प्रभाव की पहचान की गई। रिपोर्ट के मुताबिक लैब के अंदर चूहों पर किए गए एक प्रयोगात्मक अध्ययन में वैज्ञानिकों को इससे जुड़े साक्ष्य मिले हैं, जिससे किशोरावस्था में होने वाले कैंसर के इलाज में नई उम्मीद जगी है। स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट में अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता कैटरिन क्रुडेन का कहना है" इस रिसर्च से हमें कैंसर के युवा रोगियों के लिए आम दवाओं के उपयोग (रीपर्पज) से जुड़ी एक उम्मीद मिली है। इन रोगियों को बेहतर उपचार से जुड़े विकल्पों की सख्त आवश्यकता है।"
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अध्ययन में सेल सरफेस रिसेप्टर्स के दो बड़े समूहों, तथाकथित जी प्रोटीन-कप्लड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) और रिसेप्टर टायरोसिन काइनेसेस (आरटीके) के बीच समानता की जांच की गई। रिपोर्ट में बताया गया है कि कुछ बीमारियों के इलाज में सभी विकसित दवाओं में से आधे से ज्यादा दवाओं के लिए जीपीसीआर को टारगेट किया जाता है। इसमें एलर्जी, अस्थमा, डिप्रेशन, चिंता और हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) जैसी स्थितियां शामिल हैं। लेकिन अभी तक व्यापक रूप से कैंसर के इलाज के लिए जीपीसीआर का उपयोग नहीं किया गया। दूसरी ओर, विभिन्न प्रकार की सेलुलर असामान्यताओं के कारण आरटीके को कैंसर के खिलाफ दवाओं के लिए टारगेट किया जाता है, जैसे स्तन कैंसर और पेट के कैंसर।
आरटीके परिवार में एक रिसेप्टर होता है जो कि बचपन के सरकोमा (कैंसर) सहित कई कैंसर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कि इंसुलिन-लाइक ग्रोथ फेक्टर रिसेप्टर (आईजीएफ1आर) है। हालांकि, इस रिसेप्टर के खिलाफ एंटी-कैंसर दवाओं को विकसित करने के पिछले प्रयास फेल रहे हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आईजीएफ1आर की जांच की और पाया कि यह जीपीसीआर के साथ एक सिग्नलिंग मॉड्यूल साझा करता है, जिसका मतलब यह है कि जीपीसीआर को टारगेट करने वाली दवाओं के माध्यम से इसके कार्य को प्रभावित करना संभव हो सकता है।
ट्यूमर को कम करने में कैसे मदद मिली?
इस रणनीति के जरिए दवाओं के दोबारा उपयोग की नई संभावनाओं का पता चलता है, जिससे ट्यूमर-ड्राइविंग रिसेप्टर को शांत किया जा सकता है। इस तरह कैंसर को बढ़ने से रोकने में मदद मिलेगी। अपने इस मेथेड को टेस्ट करने के लिए शोधकर्ताओं ने परोक्सटीन दवा के जरिए चाइल्डहुड सरकोमा सेल और माउस मॉडल का इलाज किया। रिपोर्ट के मुताबिक परोक्सटीन एक एंटी-डिप्रेसेंट दवा है यह सेरोटोनिन रीअपटेक रिसेप्टर को नुकसान पहुंचाती है जो कि जीपीसीआर परिवार का हिस्सा है। उन्होंने पाया कि इस दवा ने नुकसानदायक कोशिकाओं पर (आईजीएफ1आर) रिसेप्टर्स की संख्या को काफी कम कर दिया और इस तरह ट्यूमर को रोकने में मदद मिली।
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करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता लियोनार्ड गिर्निटा का कहना है "हमने जीपीसीआर को निशाना बनाकर इन ट्यूमर-ड्राइविंग रिसेप्टर्स की गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए एक नई रणनीति विकसित की है।"