वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलिंजेस के साथ पारंपरिक रोग-निदान विज्ञान की मदद से ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के संबंध में एक ऐसा नया टूल तैयार किया है, जो अनुमान लगा सकता है कि इस बीमारी के किस मरीज को कब सर्जरी की जरूरत है। मेडिकल पत्रिका अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, यह तकनीक ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं को गैरजरूरी ट्रीटमेंट से बचा सकती है, उनके मेडिकल खर्चे बचाने में मदद कर सकती है और दवाओं की ऐसी नई पीढ़ी के विकास में अहम भूमिका निभा सकती है, जो ब्रेस्ट कैंसर को फिर से विकसित होने से रोक सकें।

कैंसर की शुरुआती फॉर्म्स के बारे में अनुमान लगाना दशकों से बड़ी वैज्ञानिक चुनौती रही है। मिसाल के लिए, डक्टल कार्सिनोमा इन सिटू (डीसीआईएस) ब्रेस्ट कैंसर का प्रारंभिक रूप है। इसे स्टेज ब्रेस्ट कैंसर भी कहा जाता है। कैंसर की यह स्टेज कभी-कभार ही गंभीर रूप धारण करती है। ऐसे में कुछ ही मरीजों को सर्जरी, कीमोथेरेपी और/या रेडियोथेरेपी की जरूरत होती है। बाकी पीड़ितों को घर भेजा जा सकता है। लेकिन कैंसर स्टेज का अनुमान लगाने में गलती होने का मतलब है आसानी से ठीक होने वाले मरीज का अनावश्यक ट्रीटमेंट से गुजरना, अस्पताल में ज्यादा समय बिताना, अतिरिक्त खर्च होना आदि।

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अब अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के वैज्ञानिकों ने नए टूल के आधार पर इस डायग्नॉस्टिक डिलेमा (दुविधा) का समाधान निकालने की बात कही है। उन्होंने इस नई तकनीक को डीसीआईएस मरीजों के दान किए गए सैंपलों पर टेस्ट करके देखा है। ये सैंपल दस साल पहले डोनेट किए गए थे। नई तकनीक को इन पर आजमाने वाले वैज्ञानिकों में शामिल रहे एक शोधकर्ता हावर्ड पेटी ने कहा है, 'जो मरीज गैर-आक्रामक (या प्री-इनवेसिव) कैंसर, जैसे कि डीसीआईएस, से पीड़ित थे, उनका इलाज बहुत आक्रामक तरीके से कर दिया जाता है। डीसीआईएस के मामले में इसका मतलब है आंशिक या संपूर्ण मैस्टेक्टमी (यानी सर्जरी कर स्तन हटा देना)। जबकि हम अन्य शोधकार्यों के चलते जानते हैं कि ऐसे मरीजों में से आधे से ज्यादा में यह बीमारी गंभीर रूप धारण नहीं करेगी।'

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प्रोफेसर पेटी और उनके सहयोगियों ने जिस टूल को डेवलेप किया है, वह एक बिल्कुल नई खोज पर आधारित है, जो कहती है कि डीसीआईएस के जिन मामलों में ब्रेस्ट कैंसर के फिर से विकसित होने या मेटास्टेटिक स्टेज (जब कैंसर दूसरे अंगों में फैलना शुरू होता है) में पहुंचना सुनिश्चित होता है, उनमें कोशिकाएं कुछ विशेष एंजाइम्स को मेटाबॉलिक प्लेटफॉर्म्स के रूप में रीऑर्गनाइज करती हैं। यह पुनर्गठन घातक ट्यूमर सेल्स के नीचे और बाहरी झिल्ली पर देखने को मिलता है। इस बारे में पेटी ने बताया, 'इससे एंजाइम्स को उच्च क्षमता के साथ ऑपरेट करने का मौका मिल जाता है। इसी के चलते कैंसर खतरनाक हो जाते हैं।' पेटी का कहना है कि कोशिकाओं द्वारा बनाए गए एंजाइम प्रॉडक्ट ट्यूमर सेल की आक्रामकता को बढ़ाने का काम करते हैं। साथ ही कई प्रकार की कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के प्रभाव को भी गलत दिशा में ले जाते हैं।

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ऐसे में डीसीआईएस के कौन से मामले गंभीर हो सकते हैं, यह पता लगाने के लिए पेटी और उनके सहयोगियों ने मरीजों के सैंपलों में बायोमार्कर्स टैग कर दिए और फिर उनकी एक प्रभावी कैमरे से तस्वीर ले ली। इन डिजिटल तस्वीरों को विश्लेषण के लिए एक क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर दिया गया। इस अप्रोच का इस्तेमाल करते हुए शोधकर्ताओं ने कैंसर के फिर से उभरने की सटीक भविष्यवाणी की और गैर-पुनरागमन के बारे में 91 प्रतिशत सही अनुमान लगाया। केवल चार प्रतिशत सैंपलों से जुड़ा अनुमान गलत साबित हुआ। इस संबंध में सुधार की प्रक्रिया चल रही है।

अध्ययन के लेखकों ने कहा है कि इस टूल से जानलेवा डीसीआईएस के ओवरडायग्नॉसिस में कमी होगी। वैज्ञानिकों को इससे औषधीय रूप से (फार्मास्यूटिकली) मेटाबॉलिक प्लेटफॉर्म्स को नाकाम करने में मदद मिलेगी। वे ट्यूमर को आक्रामक होने से रोक सकेंगे, कीमोथेरेपी तथा रेडियोथेरेपी के प्रभाव को बढ़ा पाएंगे और कैंसर के पुनरागमन को रोक सकेंगे। शोध में मिले परिणामों के आधार पर वैज्ञानिक अब इसके अतिरिक्त रेट्रोस्पेक्टिव एक्सपेरिमेंट करने में लग गए हैं ताकि नए डायग्नॉस्टिक टेस्ट के लिए एफडीए (अमेरिका की केंद्रीय ड्रग नियामक एजेंसी) से अप्रूवल ले सकें।

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