ब्लैक हेडड गल, ब्लैक विंग्ड स्टील्ट सेंड पाइपर, नॉदर्न शावलर, वुड सेंड पाइवर, रूडी शेल डक, पिनटेल, लेसर सेंड प्लोवर, केंटिस प्लोवर, ग्रीन बी ईटर, कॉमन कूट गेडवाल, कॉमस सेंड पाइपर, कॉनम टील, रफ, मार्श सेंड पाइपर, ब्लैक शेल्डर काइट कैसपियन गल और लिटिल रिंग्स प्लोवर। आप सोच रहे होंगे ये सब लिखकर हम आपको क्या बताना चाहते हैं। ये देसी और विदेशी प्रजाति के वे हजारों पक्षी हैं, जिनकी पिछले कुछ दिनों में राजस्थान में मौत हुई है। जी हां, राजस्थान की सांभर झील और नावां झील में करीब 25000 पक्षियों की मौत से हर कोई हैरान है। राज्य सरकार ने सांभर झील के पानी की समय-समय पर जांच की बात कही है और इसका डाटा बैंक भी तैयार किया जाएगा। क्षेत्रीय वन अधिकारी कविता सिंह का कहना है कि मृत पक्षियों को हटाने के साथ ही 600 से ज्यादा को बचाया भी गया है। अब प्रश्न है कि इतनी भारी संख्या में पक्षियों की मौत क्यों हुई? क्या यह बीमारी इंसानों में भी फैल सकती है? कितनी घातक है यह बीमारी? इससे बचाव का उपाय क्या है और क्या इस बीमारी का इलाज उपलब्ध है?

इतनी भारी संख्या में पक्षियों की मौत क्यों हुई?
सांभर झील राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 80 किमी दूर सांभर शहर में है। समुद्र तट से दूर मुख्य भूमि पर यह भारत की सबसे बड़ी सॉल्ट लेक है। सांभर झील में करीब 20 हजार पक्षियों की मौत का कारण बोटुलिज्म बैक्टिरिया को बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि सांभर झील और नागौर जिले की नावां झील के बीच दूरी कम होने के कारण यह बैक्टीरिया नावां तक पहुंच गया है, जहां करीब 5000 पक्षियों की मौत हो चुकी है। राजस्थान के वन एवं पर्यावरण मंत्री सुखराम विश्नोई ने ड्रोन से पक्षियों की तलाश और बचाव के निर्देश दिए हैं। ड्रोन के जरिए मृत पक्षियों की खोज की जाएगी और फिर उन्हें वहां से हटाया जाएगा। 

क्या यह बीमारी इंसानों में भी फैल सकती है?
बोटुलिज्म बैक्टिरिया की वजह से हजारों पक्षियों की मौत हो चुकी है। वन विभाग के अधिकारियों को बचाव अभियान खत्म होने तक नावां में ही रहने के निर्देश भी दिए गए हैं। ऐसे में प्रश्न यह है कि क्या यह बैक्टीरिया इंसानों में भी फैल सकता है? myUpchar से जुड़ी डॉ. शहनाज जफर का कहना है कि इस बैक्टीरिया के पक्षियों से इंसानों में फैलने की गुंजाइश न के बराबर है। चिड़ियों में बोलुटिज्म टाइप-सी होता है और इंसान में इस टाइप के बोटुलिज्म के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता है। हालांकि, इंसानों को प्रभावित करने वाला बोटुलिज्म टाइप - ए, बी, ई होता है। कुत्ते-बिल्लियों में बोटुलिज्म के होने की आशंका काफी कम है, लेकिन कुछ जानवरों में जैसे भेड़, घोड़े, ऊदबिलाव (मिंक) और  फिरट (नेवले की प्रजाति का जीव) में टाइप-सी बोटुलिज्म होने की आशंका रहती है।

कितनी घातक है यह बीमारी?
बोटुलिज्म बैक्टिरिया से इंसानों में बोटुलिज्म पोइजनिंग की बीमारी काफी कम देखी गई है, लेकिन यह गंभीर बीमारी है। डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों, दूषित मिट्टी या खुले हुए घाव के जरिए यह बैक्टीरिया इंसानों को निशाना बना सकता है। अगर इसका समय पर इलाज न किया जाए तो इससे मिर्गी, सांस की बीमारियां हो सकती हैं। यह इंसानों को लकवाग्रस्त (पैरालिसिस) कर सकता है। चेहरे से शुरू होकर लकवा शरीर के अन्य अंगों में फैल सकता है और स्वास नलिका तक पहुंचकर सांस संबंधी रोग पैदा कर सकता है और अंतत: मौत का कारण भी बन सकता है।

बोटुलिज्म के प्रकार
बोटुलिज्म आम तौर पर तीन प्रकार का होता है।

  • इन्फेंट बोटुलिज्म (2-8 माह के बच्चों में शहद जैसे पदार्थों से फैलता है)
  • फूडबोर्न बोटुलिज्म (डब्बाबंद खाद्य पदार्थों से फैलता है)
  • वूंट बोटुलिज्म (खुले घावों से यह संक्रमण फैलता है)

बोटुलिज्म के लक्षण
तीनों प्रकार के बोटुलिज्म में इसके शरीर में फैलने का समय अलग-अलग हो सकता है। इसके लक्षण आमतौर पर एक जैसे दिखते हैं जैसे - 

इससे बचाव का उपाय क्या है?
खाने को डिब्बे में बंद करने से पहले प्रेशर कुकर में 30 मिनट के लिए 250 डिग्री फारेनहाइट पर पकाएं

  • डिब्बा उभरा हुआ दिखे या उसमें से सड़ने की बदबू आए तो उसका सेवन न करें। 
  • एल्युमिनियम  फॉयल में बंद करके आलू सेकते हैं तो उसे गर्म ही खाएं या फ्रिज में रख दें। कमरे के सामान्य तापमान में उसे कतई न छोड़ें।
  • जिन खाद्य पदार्थों में लहसुन पड़ा हो उन्हें फ्रिज में ही रखें।
  • एक साल से कम उम्र के बच्चों को शहद न दें।
  • वूंड बोटुलिज्म से बचने के लिए ड्रग्स का सेवन न करें।

क्या इस बीमारी का इलाज उपलब्ध है?
इन्फेंट बोटुलिज्म के मामलों में डॉक्टर ऐसी दवाएं देते हैं, जिससे बच्चे को उल्टी और दस्त होते हैं। वूंड बोटुलिज्म के मामले में सर्जरी से प्रभावित उत्तक हटाने की जरूरत पड़ सकती है। फूडबोर्न और वूंड बोटुलिज्म के मामलों में इंजेक्शन के जरिए एंटी टॉक्सिन दिया जाता है। बच्चों के मामले में बोटुलिज्म इम्यून ग्लोब्युलिन का इस्तेमाल किया जाता है। सांस लेने में दिक्कत हो तो कुछ हफ्तों के लिए मैकेनिकल वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है।

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