ब्लड प्रेशर चेक करते समय रीडिंग में जो दो नंबर नजर आते हैं, उन्हें ही सिस्टोलिक और डायस्टोलिक कहा जाता है. दिल धड़कते समय ब्लड को पंप करके धमनियों में भेजता है और इस दौरान ब्लड का दबाव सबसे ज्यादा होता है और इस दबाव को बताने वाला नंबर सिस्टोलिक (ऊपर का नंबर) कहलाता है. वहीं, जब दिल आराम करता है, तो उस समय ब्लड का दबाव कम होता है और इस कम दबाव को बताने वाला नंबर डायस्टोलिक (नीचे का नंबर) कहलाता है.

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आज यह लेख में आप सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर के बीच के अंतर के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. स्वास्थ्य और रक्तचाप में क्या संबंध है?
  2. सिस्टोलिक रक्तचाप
  3. हाई सिस्टोलिक रक्तचाप
  4. लो सिस्टोलिक रक्तचाप
  5. डायस्टोलिक रक्तचाप
  6. बीपी चेक करने का सही समय
  7. सारांश
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक रक्तचाप में अंतर के डॉक्टर

जब दिल धड़कता है, तो धमनियों के जरिए ब्लड पूरे शरीर में पहुंचता है, लेकिन दिल की धड़कन पूरे दिन एक जैसी नहीं रहती. शरीर की अलग-अलग गतिविधियों के साथ इसमें बदलाव होता रहता है. इसे चेक करने के लिए सिस्टोलिक और डायस्टोलिक प्रेशर का पता लगाया जाता है. सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. अगर रीडिंग ज्यादा आती है, तो इसे हाई ब्लड प्रेशर से जोड़कर देखा जाता है. वहीं, कम है, तो इसका मतलब यह है कि मस्तिष्क व अन्य अंगों तक पर्याप्त ब्लड नहीं पहुंच रहा है. इस स्थिति को लो ब्लड प्रेशर कहा जाता है. सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर में आया बदलाव हृदय रोग व अन्य शारीरिक समस्याओं की ओर भी संकेत करता है.

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दिल धड़कते समय रक्त को धमनियों में भेजता है. सिस्टोलिक धमनियों में मौजूद रक्त के दबाव को मापता है. इस दौरान रक्तचाप सबसे अधिक होता है. जब व्यक्ति आराम कर रहा हो और सिस्टोलिक प्रेशर की रीडिंग 120 mmHg से कम हो, तो इसे सामान्य माना जाता है. वहीं, अगर यह 90 mmHg से कम हो, तो यह चिंता का विषय हो सकता है. इस स्थिति में उचित इलाज की जरूरत होती है. दूसरी तरफ, अगर रीडिंग 180 mmHg से अधिक, तो इसे हाई बीपी का सबसे खतरनाक रूप माना गया है.

यहां इसे समझना भी जरूरी है कि अगर कोई व्यक्ति एक्सरसाइज या रनिंग करता है, तो दिल तेजी से धड़कता है और ब्लड को भी तेजी से पंप करता है, जिससे सिस्टोलिक प्रेशर बढ़ जाता है. इसलिए, ब्लड प्रेशर की जांच हमेशा आराम करने की स्थिति में ही करनी चाहिए. अगर फिर भी सिस्टोलिक प्रेशर बढ़ा हुआ आता है, तो इसके पीछे मुख्य कारण धमनियों के सख्त होने के माना गया है. धमनियों के सख्त होने पर ब्लड को पंप करने के लिए हार्ट को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

हाई सिस्टोलिक के भी कई चरण माने गए हैं, जो इस प्रकार हैं -

  • अगर सिस्टोलिक प्रेशर 130-139 के बीच है, तो इसे स्टेज 1 हाई बीपी माना गया है, जो डॉक्टर की सलाह पर कुछ समय के लिए दवा खाने और लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर ठीक किया जा सकता है.
  • 140 या उससे अधिक को स्टेज 2 हाई बीपी माना गया है, जिसमें स्ट्रोक या दिल का दौरा आने का जोखिम बना रहता है. इस स्थिति में लंबे समय तक दवा लेने की जरूरत पड़ सकती है.
  • 180 या उससे अधिक के सिस्टोलिक को हाई बीपी का गंंभीर रूप मानाा गया है और इस स्थिति में मरीज को तुरंत इलाज की जरूरत होती है.

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जब रीडिंग 90 mmHg से कम हो, तो इसे लो बीपी कहा जाता है. इससे सिर का घूमना, चक्कर आना या बेहोशी जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. अगर लो बीपी का इलाज न किया जाए है, तो मरीज की किडनी काम करना बंद कर सकती है.

लो सिस्टोलिक रक्तचाप की स्थिति तब बनती है, जब शरीर में रक्त की मात्रा बहुत कम हो जाती है. ऐसा शरीर में पानी की कमी होने या ज्यादा ब्लीडिंग होने के कारण होती है. इसके अलावा, जब हृदय की मांसपेशियां ब्लड को पंप नहीं कर पाती हैं, तो भी सिस्टोलिक प्रेशर कम हो सकता है. ऐसा हृदय की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने (कार्डियोमायोपैथी) या धमनियों के अचानक चौड़ा होने के कारण होता है.

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सामान्य डायस्टोलिक रक्तचाप 80 mmHg से कम होता है. अगर किसी को हाई बीपी है, तो आराम के दौरान भी डायस्टोलिक नंबर बढ़ा हुआ नजर आता है. अगर डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर 60 mmHg या उससे कम है, तो इसे गंभीर रूप से कम की श्रेणी में रखा गया है और अगर यह 110 mmHg या इससे अधिक है, तो गंभीर रूप से हाई की श्रेणी में रखा गया है.

डायस्टोलिक रक्तचाप के हाई होने के भी कई चरण हैं -

  • 80-89 का डायस्टोलिक बीपी स्टेज 1 हाइपरटेंशन है, जिसे डॉक्टर की सलाह पर कुछ समय के लिए दवा लेकर और लाइफस्टाइल में बदलाव करके सामान्य किया जा सकता है.
  • 90 या उससे अधिक का डायस्टोलिक बीपी स्टेज 2 हाइपरटेंश है, जो स्ट्रोक या दिल के दौरे के जोखिम को काफी बढ़ा सकता है. इस स्थिति में लंबे समय तक दवा लेने की जरूरत होती है.
  • डायस्टोलिक बीपी 120 या उससे अधिक का मतलब है कि हाई बीपी खतरनाक स्तर पर हैं और मरीज को जल्द से जल्द इलाज की जरूरत है.

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ब्लड प्रेशर का लेवल दिनभर बदलता रहता है. जहां सुबह के समय ये सबसे ज्यादा हाेता है, तो रात के समय कम होता है. इसलिए, अगर कोई हाई बीपी का शिकार है, तो उसे रोज एक तय समय पर ही बीपी चेक करना चाहिए. सुबह के समय नाश्ता करने से पहले या शाम को खाने से पहले इसे चक करना सही रहता है और एक बार आपने तय कर लिया कि इसे कब चेक करना है, तो रोज उसी समय पर बीपी को नोट करें. ऐसा करने से सबसे सटीक परिणाम मिल पाते हैं.

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ब्लड प्रेशर एक का माप है, जो दिल के धड़कने (सिस्टोलिक) और धड़कनों के बीच दिल के आराम करने (डायस्टोलिक) करने पर धमनियों पर पड़ने वाले दबाव को चेक करता है. हाई बीपी और लो बीपी का चेक कर उसका इलाज करने के लिए सिस्टोलिक और डायस्टोलिक नंबर का पता होना जरूरी है. इसलिए, अगर किसी को लगता है कि उसका ब्लड प्रेशर ठीक नहीं है, तो उसे आराम से एक जगह बैठकर शांति से बीपी को चेक करना चाहिए.

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