हाई ब्लड प्रेशर हमारी जीवनशैली से जुड़ी ऐसी बीमारी है, जो दुनियाभर में तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है। हाई बीपी को साइलेंट किलर भी कहा जाता है, क्योंकि इस बीमारी के स्पष्ट तौर पर तब तक कोई लक्षण नजर नहीं आते जब तक कि यह बीमारी हृदय या धमनियों को प्रभावित न करने लगे। डॉक्टरों का भी यही मानना है कि उच्च रक्तचाप की समस्या सिर्फ बढ़ती उम्र में नहीं, बल्कि गलत लाइफस्टाइल की वजह से अब तो युवाओं में भी देखने को मिल रही है।

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हाई बीपी के मरीज दवाइयों का सेवन करने के साथ-साथ अपनी डाइट में भी कई तरह के बदलाव करते हैं ताकि इस बीमारी का इलाज हो सके, लेकिन ज्यादातर मौकों पर यही देखने को मिलता है कि मरीज द्वारा सबकुछ सही करने और चिकित्सा से जुड़ा सही प्रोटोकॉल फॉलो करने के बावजूद ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। 26 मई 2020 को 'ऐनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन' नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुई एक स्टडी में बताया गया है कि हमारे शरीर में मौजूद ऐल्डोस्टेरोन नाम का हार्मोन इस तरह के ब्लड प्रेशर के मामलों के लिए जिम्मेदार है।

आज इस लेख में आप हाई बीपी और ऐल्डोस्टेरोन हार्मोन के बीच का संबंध विस्तार से जानेंगे - 

(और पढ़ें : हाई बीपी के घरेलू उपाय)

  1. बीपी को कैसे प्रभावित करता है एल्डोस्टेरोन?
  2. क्या प्राइमरी एल्डोस्टेरोनिज्म का इलाज हो सकता है?
  3. सारांश
आपके हाई ब्लड प्रेशर का कारण है शरीर में मौजूद यह हार्मोन के डॉक्टर

एल्डोस्टेरोन एक तरह का स्टेरॉयड हार्मोन है जिसका उत्पादन अधिवृक्क ग्रंथि (ऐड्रिनल ग्लैंड) के बाहरी भाग द्वारा किया जाता है और यह हार्मोन किडनी पर काम करता है ताकि शरीर में ब्लड प्रेशर के लेवल को बनाए रखने के लिए सोडियम और पोटैशियम के लेवल को बरकरार रखा जा सके। अगर अधिवृक्क ग्रंथि द्वारा एल्डोस्टेरोन हार्मोन का उत्पादन अधिक होने लगे तो हमारा शरीर सोडियम को तो रोक कर रखेगा लेकिन पोटैशियम की कमी होने लगेगी। नतीजतन, शरीर में वॉटर रिटेंशन और हाई ब्लड प्रेशर होने लगेगा। एल्डोस्टेरोन के इस अतिउत्पादन की प्रक्रिया को प्राइमरी एल्डोस्टेरोन कहते हैं और वैसे लोग जो इस स्थिति से पीड़ित होते हैं उनके लिए सामान्य पारंपरिक तरीकों से हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करना बेहद मुश्किल होता है।

इस स्टडी को अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) की तरफ से वित्तीय सहायता मिली थी जिसमें अमेरिका के 4 अस्पतालों के 1 हजार 15 मरीजों को शामिल किया गया था। इसमें सामान्य ब्लड प्रेशर वाले लोगों के साथ ही उन मरीजों को भी शामिल किया गया था जिन्हें अलग-अलग डिग्री के घटते-बढ़ते हाई ब्लड प्रेशर की समस्या थी। इनमें से करीब 22 प्रतिशत मरीज जिन्हें रिजिस्टेंट यानी प्रतिरोध हाइपरटेंशन (एक तरह का हाई ब्लड प्रेशर जो दवाइयों के अनुसार प्रतिक्रिया नहीं देता) और स्टेज 2 यानी गंभीर हाइपरटेंशन था वे भी प्राइमरी एल्डोस्टेरोनिज्म से पीड़ित पाए गए।

वहीं, वैसे मरीज जिन्हें हल्का या स्टेज 1 का हाइपरटेंशन था उनमें से करीब 16 प्रतिशत में प्राइमरी एल्डोस्टेरोनिज्म पाया गया। इसकी सबसे बुरी बात ये है कि 11 प्रतिशत मरीज जिनका ब्लड प्रेशर नॉर्मल था वे भी इसी समस्या से पीड़ित पाए गए जो इस बात की ओर इशारा करता है कि ये मरीज भी आगे चलकर अपने जीवन में हाइपरटेंशन का शिकार हो सकते हैं। यह स्टडी आखिरकार यही दिखाती है कि अगर प्राइमरी एल्डोस्टेरोन के लिए जल्दी और बेहतर स्क्रीनिंग हो जाए तो मरीजों में हाई ब्लड प्रेशर की पहचान जल्दी हो पाएगी जिससे उनका इलाज बेहतर तरीके से हो पाएगा।

(और पढ़ें : हाई बीपी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज)

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पिछले काफी समय से डॉक्टरों को प्राइमरी एल्डोस्टेरोनिज्म की जानकारी है और इस परिस्थिति को काफी दुर्लभ माना जाता है। हालांकि ऊपर हम जिस स्टडी की बात कर रहे हैं वह इससे अलग विचार की है। इसका मतलब है कि डॉक्टरों को पूर्नमूल्यांकन करने की जरूरत है कि वे कैसे हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के एल्डोस्टेरोन लेवल की जांच करते हैं।

मौजूदा समय में एल्डोस्टेरोन नाम के इस हार्मोन की जांच करने के लिए सुबह के समय लिए गए खून की जांच की जाती है। हालांकि बाकी हार्मोन्स की ही तरह इसका लेवल भी शरीर में दिनभर में बदलता रहता है। एल्डोस्टेरोन से जुड़ी ऊपर बताई गई स्टडी के अनुसंधानकर्ताओं ने और ज्यादा कठिन प्रक्रिया का इस्तेमाल किया था जिसमें 24 घंटे के अंदर अलग-अलग समय पर यूरिन सैंपल्स इक्ट्ठा किए गए थे।

सामान्य रूप से किए जाने वाले डायग्नोस्टिक या नैदानिक प्रक्रिया में इस तरह की कठिन टेस्टिंग करना मुश्किल साबित हो सकता है लेकिन ऐसा करना अत्यावश्यक है क्योंकि एल्डोस्टेरोन आपके हाई ब्लड प्रेशर के लेवल में व्यापक भूमिका निभाता है। सबसे अच्छी बात ये है कि एक बार डायग्नोज होने के बाद प्राइमरी एल्डोस्टोरोन का इलाज आसानी से किया जा सकता है। इसके इलाज में एल्डोस्टेरोन ब्लॉकिंग दवाइयां जैसे- स्पिरोनोलैक्टोन और एपिलेरेनोन का इस्तेमाल होता है।

(और पढ़ें : हाई बीपी में परहेज, क्या करें क्या नहीं)

ऐसे में अगर किसी व्यक्ति को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है और उन्हें दवाइयों के साथ-साथ स्वस्थ और संतुलित डाइट का सेवन करना चाहिए। अगर फिर भी कोई आराम न मिले, तो उन्हें डॉक्टर से बात करके अपना एल्डोस्टेरोन लेवल चेक करवाना चाहिए, ताकि बीमारी के सही कारण का पता चल सके और उसका सही इलाज किया जा सके।

Dr. Farhan Shikoh

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