चिंता या ऐंग्जाइटी को गहन भय या डर की भावना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो किसी व्यक्ति के विचार के साथ प्रतिक्रिया देने या उसका सामना करने की क्षमता को कम कर सकता है। वैसे तो चिंता, तनाव की भावनाओं के प्रति मानव शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, लेकिन चिंता अलग-अलग लोगों द्वारा अलग तरह से महसूस की जा सकती है और यह मुख्य रूप से भावनात्मक या कुछ विशेष चिकित्सीय समस्याओं के कारण उत्पन्न हो सकती है।
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आंकड़े बताते हैं कि इंसान की आधुनिक जीवनशैली और इसके साथ जुड़े विभिन्न दबाव, चिंता विकार के मामलों को बढ़ाने में योगदान देते हैं। साल 2017 में अमेरिकन साइकायट्रिक एसोसिएशन की ओर से करवाए गए एक पोल ने सुझाव दिया कि सर्वे में शामिल लोगों में से लगभग दो-तिहाई लोग चिंता का अनुभव कर रहे थे और एक तिहाई लोग ऐसे थे जो बीते वर्ष की तुलना में मौजूदा वर्ष में सामान्य से अधिक चिंतित थे। उसी साल यानी 2017 में द लांसेट साइकायट्री में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया कि हर 7 में से 1 भारतीय मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित था। अध्ययन के अनुसार, देश में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से पीड़ित 19 करोड़ 70 लाख (197 मिलियन) लोगों में से लगभग 4.5 करोड़ (45 मिलियन) लोग अकेले चिंता विकार से पीड़ित थे।
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इस समस्या ने दुनियाभर में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बोझ को बढ़ा दिया है और इस समस्या को अधिक गहराई से समझने के लिए कई अध्ययन भी किए गए हैं। जुलाई 2020 में जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्ययन ने मस्तिष्क में ऐंग्जाइटी या चिंता की शारीरिक अभिव्यक्ति को देखने का प्रयास किया है ताकि स्थिति को डायग्नोज करने और उसके इलाज के लिए और अधिक प्रभावी तरीके सामने आ सकें।