रेबीज एक गंभीर रोग है, जो वायरस के कारण होता है। यह एक संक्रामक रोग है, जो मुख्य रूप से जानवरों को होता है। रेबीज रोग से ग्रसित जानवर के द्वारा किसी व्यक्ति को काट लेने से यह रोग संबंधित व्यक्ति को भी हो जाता है। शुरुआती दौर में इसके कुछ लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन एक सप्ताह से महीने भर बाद इस घाव में दर्द होने लगता है और व्यक्ति को थकान, सिरदर्द, बुखार और चिड़चिड़ापन महसूस होने लगता है। इन लक्षणों के साथ ही संक्रमित व्यक्ति को दौरे, मतिभ्रम (Hallucination) और लकवा भी पड़ सकता है। यदि समय रहते इसका इलाज ना किया गया तो रेबीज व्यक्ति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।

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रेबीज के रोग की गंभीरता को देखते हुए आपको इस लेख में रेबीज वैक्सीन यानी रेबीज के टीके के बारे में बताया गया है। साथ ही इसमें आपको रेबीज टीकाकारण क्या है, रेबीज टीके की खुराक, रेबीज इंजेक्शन की कीमत, रेबीज इंजेक्शन के साइड इफेक्ट, रेबीज इंजेक्शन किसे नहीं दिया जाना चाहिए और रेबीज के टीके की खोज, आदि विषयों को भी विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है।

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  1. रेबीज टीकाकरण क्या है - Rabies tikakaran kya hai
  2. रेबीज टीके की खुराक - Rabies tike ki khurak
  3. रेबीज इंजेक्शन की कीमत - Rabies vaccine costs
  4. रेबीज इंजेक्शन के साइड इफेक्ट - Rabies injection ke side effects
  5. रेबीज इंजेक्शन किसे नहीं लेना चाहिए - Rabies injection kise nahi lena chahiye
  6. रेबीज टीके की खोज - Rabies tika ki khoj

रेबीज वैक्सीन में सक्रिय तत्व (Active immunizing agent) मौजूद होते हैं, जो रेबीज के वायरस से आपका बचाव करते है और इस वायरस से छुटकारा दिलाते हैं। इस टीकाकरण के माध्यम से शरीर में ऐसे एंटीबॉडीज बनते हैं जो रेबीज के वायरस से बचाव करते हैं। रेबीज एक संक्रामक रोग है और यह न्यूरोट्रोपिक लाइसिसिवर्स (Neurotropic lyssavirus) वायरस के कारण होता है। यह वायरस मुख्य रूप से जानवरों में पाया जाता है, जब इससे संक्रमित जानवर किसी व्यक्ति को काट लें, तो ऐसे में यह वायरस व्यक्ति को भी अपनी चपेट में ले लेता है। (और पढ़ें - वायरस क्या है)

सामान्यतः यह रेबीज एक व्यक्ति से दूसरे तक नहीं फैलता है। मात्र अंग प्रत्यारोपण के दुर्लभ मामले में ही यह वायरस या रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संक्रमित हो सकता है। जानवर के काटने के अलावा जब व्यक्ति के खुले घाव या चोट किसी संक्रमित जानवर की लार के संपर्क में आते हैं (जैसे जानवर के द्वारा चोट या घाव को चाटना) तो ऐसे में भी रेबीज हो सकता है। लोगों के घरों में पलने वाले पालतू जानवरों को यदि रेबीज से बचाव के लिए टीके नहीं लगे हैं तो इनसे भी रेबीज होने का खतरा होता है। (और पढ़ें - चोट लगने पर क्या करें)

निम्नलिखित कुछ जानवरों को रेबीज होने की संभावना अधिक होती है।

रेबीज वाला जानवर यदि आपको काट लें या आपकी खुली चोट को चाट लें, तो ऐसे में आपको तुरंत डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। घर के बाहर घुमने वाले पागल कुत्तों से भी लोगों के दूर रहना चाहिए। रेबीज से संक्रमित कुत्ते, बंदर, बिल्ली या अन्य जानवर के काटे जानें पर व्यक्ति में निम्न तरह के शुरूआती लक्षण दिखाई देते हैं।

रेबीज में होने वाले गंभीर लक्षण-

रेबीज के लक्षण दिखाई देने वाले अधिकतर मामलों में व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। 

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रेबीज के वायरस से बचाव व रेबीज के संक्रमण से ग्रसित जानवर से काटे जाने के बाद, दोनों ही स्थितियों में रेबीज के टीके की आवश्यकता होती है। इस टीके को किसे दिया जाता है और कितनी खुराक में दिया जाता है इस बारे में नीचे विस्तार से बताया जा रहा है:

रेबीज वायरस से बचाव के लिए टीका लगाना:

जिन व्यक्तियों को रेबीज होने की संभावना अधिक होती है उनको रेबीज वैक्सीन दी जाती है। कई स्थितियों में व्यक्ति को रेबीज होने की संभावना अधिक होती है।

ऐसें व्यक्तियों को रेबीज के टीके की तीन खुराक दी जाती है। टीके की पहली खुराक डॉक्टर किसी भी समय दे सकते हैं। जिसके सात दिनों के बाद दूसरी खुराक और पहली खुराक के 21 से 28 दिनों के बीच में तीसरी खुराक दी जाती है।  

किसी जानवर के काटने के बाद रेबीज का टीका लगाना –

किसी जानवर के काटने के बाद व्यक्ति को अपने घाव को साफ करके डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इसके बाद डॉक्टर आपकी जांच कर ये निर्धारित करते हैं कि आपको टीके की आवश्यकता है या नहीं।

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रेबीज से संक्रमित जानवर के काटने के बाद आपको यह रोग न हो इसलिए व्यक्ति को टीके की चार खुराक दी जाती है। जानवर के काटने के बाद टीके की पहली खुराक जल्द से जल्द दी जाती है, इसके बाद दूसरी खुराक तीसरे दिन, तीसरी खुराक सातवें दिन और चौथी खुराक 14वें दिन दी जाती है। डॉक्टर पहली खुराक के साथ आपको रेबीज इम्युन ग्लोबुलिन (Rabies immune globulin) नामक इंजेक्शन भी लगाते हैं।

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जिन व्यक्तियों ने किसी जानवर के काटने से पहले ही इंजेक्शन लगवाया होता है, उनको रेबीज के दो टीके लगाएं जाते हैं। पहला टीका जल्द से जल्द, जबकि दूसरा टीका तीसरे दिन लगाया जाता है। इस स्थिति में रेबीज इम्युन ग्लोबुलिन इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। 

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रेबीज वायरस से बचाव के लिए देश में रेबीज की टीका कई ब्रांड में उपलब्ध है। ब्रांड के आधार पर इस इंजेक्शन की मात्रा और कीमत अलग-अलग हो सकती है। देश में मिलने वाले रेबीज के कुछ इंजेक्शन और उनकी कीमतों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

रेबीज वैक्सीन अनुमानित कीमत
अभयरैब इंजेक्शन (Abhayrab Injection) 336
इंडीरैब (Indirab 2.5 IU)   315
रबिवैक्स एस वैक्सीन (Rabivax S Vaccine) 336.77
एक्सपीरैब (Xprab 150 IU Injection) 336.76
बैरीरैब पी 300 (Berirab P 300 IU Injection) 5286.54

 

सामान्यतः रेबीज के टीके से होने वाले साइड इफेक्ट बेहद कम होते हैं और यह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं। इस इंजेक्शन से गंभीर साइड इफेक्ट बेहद कम मामलों में देखने को मिलते हैं। इस इंजेक्शन को लगाना सुरक्षित होता है, लेकिन कई मामले ऐसे भी सामने आते हैं, जिसमें इस टीके की प्रतिक्रियाएं गंभीर हो सकती हैं।

रेबीज के इंजेक्शन से होने वाले सामान्य साइड इफेक्ट को निम्न तरह से बताया गया है:

टीके से होने वाले कुछ दुर्लभ नुकसान

रेबीज के इंजेक्शन से गंभीर दुष्प्रभाव बेहद ही कम मामलों में दिखाई देते हैं। 

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कई बार रेबीज वैक्सीन को कुछ विशेष परिस्थितियो में लेने की सलाह नहीं दी जाती है। किसी रोग या अन्य स्वास्थ्य स्थिति के कारण डॉक्टर इस वैक्सीन को बच्चों या वयस्कों को देना उचित नहीं मानते है। आगे जानते हैं कि किन परिस्थितियों में रेबीज वैक्सीन नहीं दी जानी चाहिए या डॉक्टर की सलाह के बाद ही लेनी चाहिए।

यदि आपको रेबीज से संक्रमित कोई जानवर काट लें या किसी अन्य तरह से आप रेबीज के वायरस के संपर्क में आ जाए, तो ऊपर बताई गई किसी भी स्थिति में आप रेबीज का टीका लगवा सकते हैं। साथ ही आपके डॉक्टर इस विषय में आपको सही सुझाव देंगे।   

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रेबीज टीके की खोज फ्रांस के दो वैज्ञानिक लुई पाश्चर (Louis pasteur) और इमाइल रोउक्स (Emile Roux) ने वर्ष 1885 में की थी। नौ साल के बच्चे जोसफ मिस्टर (joseph meister) को पागल कुत्ते के काटने पर यह वैक्सीन पहली बार 6 जुलाई 1885 में किसी व्यक्ति को दी गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हर वर्ष करीब 59 000 लोग रेबीज की वजह से मरते हैं। रेबीज के कारण होने वाली मौतों में 90 प्रतिशत मामले रेबीज से संक्रमित कुत्ते के काटने से होती है। भारत में ही हर वर्ष करीब 18,000 से 20,000 लोगों की मृत्यु रेबीज की वजह से होती हैं। 

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लोगों को रेबीज रोग के प्रति जागरूक व सर्तक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 28 सिंतबर को विश्व रेबीज दिवस आयोजित किया जाता है। भारत में आज भी रेबीज के कई मामले पाए जाते हैं। लोगों को रेबीज के घातक परिणामों से बचाने के लिए कई सरकारी अस्पतालों में रेबीज के इंजेक्शन लगाएं जाते हैं, ताकि इलाज के अभाव में रेबीज से किसी की मृत्यु न हो।

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