वायरस से संक्रमित मच्छर किसी शिशु या वयस्क को काट ले तो ऐसे में जापानी इन्सेफेलाइटिस (जेई) रोग हो जाता है। कई मामलों में यह रोग जानलेवा भी हो सकता है। शिशु व वयस्कों को इस संक्रमण से बचाने के लिए जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन दी जाती है।

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इस जापानी इन्सेफेलाइटिस रोग की गंभीरता के चलते ही आपको इस लेख में जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इस लेख में आपको जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन क्या है, जापानी इन्सेफेलाइटिस किस उम्र में दी जानी चाहिए, भारत में जेई वैक्सीन की कीमत, जेई वैक्सीन साइड इफेक्ट और जेई टीकाकरण किसे नहीं देना चाहिए आदि के बारे में भी बताया गया है।

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  1. जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन क्या है - Japanese Encephalitis vaccine kya hai
  2. जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन कब और किसे दी जाती है - Japanese Encephalitis vaccine kab aur kise di jati hai
  3. जेई टीके की कीमत - Japanese encephalitis vaccine cost in india
  4. जेई वैक्सीन के साइड इफेक्ट - JE vaccine side effects in hindi
  5. जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन किसे नहीं दी जानी चाहिए - Japanese Encephalitis vaccine kise nahi di jani chahiye
  6. भारत में जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन - Japanese Encephalitis vaccine in india
जापानी इन्सेफेलाइटिस टीकाकरण के डॉक्टर

जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन से पहले आपको जापानी इन्सेफेलाइटिस रोग के बारे में जानना होगा। यह रोग मुख्य रूप से एशियाई देशों में होता है। भारत में भी इसके कई मामले देखने को मिलते हैं। जापानी इन्सेफेलाइटिस एक वायरल संक्रमण है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है और फ्लेविवायरस (flavivirus) प्रजाति के संक्रमित मच्छर के काटने से फैलता है।

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जापानी इन्सेफेलाइटिस वायरस से संक्रमित अधिकांश लोगों के शरीर में कोई लक्षण उभरकर दिखाई नहीं देते हैं, जबकि कुछ मामलों में मरीज को हल्के लक्षण महसूस होते हैं, जो अक्सर फ्लू के लक्षण समझ लिए जाते हैं। सामान्यतः जापानी इन्सेफेलाइटिस से प्रभावित हर 250 लोगों में से 1 व्यक्ति में गंभीर लक्षण हो सकते हैं। मरीज के मस्तिष्क में संक्रमण फैलने की वजह से ऐसा होता है। आमतौर पर गंभीर लक्षण संक्रमण होने के 5 से 15 दिनों के बाद दिखाई देते हैं। इस रोग में व्यक्ति को तेज बुखार, सिरदर्द, दौरे पड़ना, गर्दन में अकड़न, उल्टी आना, चक्कर आना, किसी चीज का भ्रम होना, मांसपेशियों को हिलाने में मुश्किल होना और लकवा पड़ना आदि लक्षण हो सकते हैं।

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सामान्यतः इस रोग से ग्रसित हर तीन व्यक्ति में से एक व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना काफी अधिक होती है। इतना ही नहीं इस रोग के गंभीर मामलों में कई बार व्यक्ति स्थाई रूप से विकलांग भी हो जाते हैं। हालांकि यह रोग मरीज को छूने या उसके संपर्क में रहने से नहीं फैलता है। जापानी इन्सेफेलाइटिस उस मच्छर के काटने से फैलता है, जो पहले से ही इस वायरस से संक्रमित होते हैं। जापानी एनसेफेलिटिस रोग का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है।

यदि किसी व्यक्ति को यह संक्रमण हो जाए तो उपचार से केवल उसके लक्षणों में सुधार किया जा सकता है। जो एंटीबायोटिक दवाएं मौजूद है वो इस वायरस के खिलाफ प्रभावी नहीं होती हैं और इस वायरस के लिए किसी एंटी वायरल दवा की खोज अभी तक नहीं की गई है। इसका बचाव जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन के माध्यम से ही किया जा सकता है। 

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भारत सहित एशिया के ग्रामीण इलाकों में इस रोग के होने की संभावना बेहद अधिक होती है। इसलिए शिशु और वयस्कों को इस संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए ही जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन दी जाती है।   

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जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन दो महीने के शिशु या उससे अधिक आयु के बच्चों या व्यस्कों को दी जा सकती है।

जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन लेने की जरूरत किन लोगों को होती है:

  • जापानी इन्सेफेलाइटिस वाली जगह पर कम से कम एक माह के लिए जाने वाले लोगों को (और पढ़ें - नवजात शिशु को खांसी क्यों होती है)
  • एक महीने से कम समय के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जाने वाले लोगों को
  • जिस जगह जापानी इन्सेफेलाइटिस रोग फैला हो, उस जगह की यात्रा पर जाने वाले व्यक्ति को (और पढ़ें - ग्राइप वाटर के फायदे)
  • यात्रा की योजना निर्धारित न होने की स्थिति पर
  • लैब में काम करने वाले लोगों को भी जापानी इन्सेफेलाइटिस होने का खतरा अधिक होता है। (और पढ़ें - बच्चे को दूध पिलाने के तरीके)

जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन को दो खुराक में दिया जाता है। इसकी दोनों खुराक 28 दिनों के अंतराल में दी जाती है। किसी यात्रा पर जाने से करीब सप्ताह भर पहले इसकी दूसरी खुराक देना जरूरी होता है। 3 साल से कम आयु के शिशुओं को बड़े बच्चों के मुकाबले कम खुराक दी जाती है।

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इसके साथ ही 17 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों को एक साल से अधिक समय होने पर जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन की बूस्टर (booster) खुराक दी जानी चाहिए, क्योंकि इस रोग के होने का खतरा हमेशा बना रहता है। फिलहाल बच्चों या शिशु को बूस्टर खुराक देने के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

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जापानी इन्सेफेलाइटिस वायरस से बचाव के लिए देश में जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन के कई ब्रांड उपलब्ध है। ब्रांड के आधार पर इस वैक्सीन की मात्रा अलग-अलग हो सकती है। देश में मिलने वाली कुछ जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन और उनकी कीमत को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन कीमत
जीव (Jeev 5mcg)    985
जीव (Jeev 6 mcg)  1285
जेनवैक वैक्सीन (Jenvac vaccine 0.5ml) 1247
जेई-शिल्ड वैक्सीन (JE-Shield Vaccine 0.5ml) 1247
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सामान्यतः जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट बेहद कम होतै हैं और यह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं। इस वैक्सीन से गंभीर साइड इफेक्ट बेहद कम मामलों में देखने को मिलते हैं। इस वैक्सीन को लेना सुरक्षित होता है, लेकिन कई मामले ऐसे भी सामने आते हैं, जिसमें इस वैक्सीन की प्रतिक्रियाएं गंभीर हो सकती हैं।

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जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन से होने वाले सामान्य साइड इफेक्ट इस प्रकार है: 

कई बार जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन को कुछ विशेष परिस्थितियो में लेने की सलाह नहीं दी जाती है। किसी रोग या अन्य स्वास्थ्य स्थिति के कारण डॉक्टर इस वैक्सीन को शिशु या वयस्कों को देना उचित नहीं मानते है। आगे जानते हैं कि किन लोगों को जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए।

  • 2 माह से कम आयु के शिशु को वैक्सीन नहीं दी जानी चाहिए। (और पढ़ें - बच्चे को मिट्टी खाने की आदत)
  • यदि किसी व्यक्ति को जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन की पिछली खुराक से घातक एलर्जी हुई हो या इंजेक्शन की जगह पर एलर्जी हुई हो तो ऐसे में व्यक्ति को वैक्सीन की दोबारा खुराक नहीं लेनी चाहिए। (और पढ़ें - एमएमआर टीका कब लगाना चाहिए)
  • जिन लोगों को जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन की प्रतिक्रिया से हल्की या गंभीर बीमारी हो, उनको इस वैक्सीन की दोबारा खुराक लेने से पहले ठीक होने तक का इंतजार करना चाहिए। साथ ही दोबारा खुराक लेते समय यदि आप बीमार हैं तो इस बारे में अपने डॉक्टर से जरूर बात करें।
  • जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन में मौजूद तत्व से किसी प्रकार की गंभीर एलर्जी होने पर लोगों को इस वैक्सीन को नहीं लेना चाहिए। (और पढ़ें - बच्चों की सेहत के इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज)
  • वैक्सीन लेने से पहले एलर्जी हो तो आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
  • गर्भवती महिला को वैक्सीन लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। (और पढ़ें - बच्चे के दांत निकलना
  • एक महीने से कम समय के लिए शहरी यात्रा पर जाने वाले लोगों को जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन लेने की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन इस विषय पर अपने डॉक्टर सलाह लें। 

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भारत में जापानी इन्सेफेलाइटिस का पहला मामला वर्ष 1955 में सामने आया था। देश के विभिन्न हिस्सों में इस रोग का प्रकोप मौजूद है, परन्तु असम, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड में इसका प्रभाव काफी अधिक देखने को मिलता है।

2006 के दौरान जेई (JE: जापानी इन्सेफेलाइटिस) टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था, जिसमें असम, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के 11 सबसे संवेदनशील जिलों को कवर किया गया था। इसके बाद असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के राज्यों में कुल मिलाकर 86 जिलों को कवर किया गया।

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वर्ष 2016 में भारत में जापानी इन्सेफेलाइटिस के करीब 1,676 मामले सामने आए, जिनमें से करीब 283 लोगों की मौत हुई है। जबकि 2018 में अगस्त के शुरुआती सप्ताह तक उत्तर प्रेदश में एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (Acute encephalitis syndrome) और जापानी इन्सेफेलाइटिस दोनों ही रोग के करीब 1427 मामले सामने आए, जिसमें से 111 लोगों की मृत्यु हो गई। 

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