बुढ़ापा आना वैसे तो बेहद ही सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन फिर भी इसको परिभाषित करना काफी कठिन हो सकता है। यह एक शारीरिक प्रक्रिया है,जो पूरी तरह से प्राकृतिक है, जो धीरे-धीरे समय के अनुसार होती है। लेकिन यह सभी व्यक्तियों में एक ही उम्र में विकसित नहीं होती और साथ ही बुढ़ापा होना एक व्यापक समस्या भी है। यह सिर्फ एक शारीरिक समस्या नहीं है, यह मानसिक व बौद्धिक प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करती है। साथ ही इस कारण व्यक्ति सामाजिक रूप से भी काफी प्रभावित हो जाता है। जैसा कि इन सभी पहलुओं से आपके जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है, इसी प्रकार एजिंग के सभी प्रकार आपके स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं।
हालांकि, यदि सीधी भाषा में कहें तो बुढ़ापा आने का सीधे तौर पर मतलब है कि शरीर के अंगों के काम करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसमें अंग धीरे-धीरे काम करना कम करते रहते हैं और अंत में पूरी तरह से काम करना बंद कर देते हैं अर्थात् व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया होते हुए भी कुछ प्रकार के जोखिम कारक हैं, जो समय से पहले बुढ़ापा आने का कारण बन सकते हैं।
पोषक तत्वों की कमी और संतुलित आहार कम होना ही एक ऐसा कारक है, जो समय से पहले बुढ़ापा आने का कारण बन सकता है। व्यायाम और अन्य शारीरिक गतिविधियां भी हैं, जो कई बार समय से पहले बुढ़ापा आने का कारण बन सकती हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑर्थोपेडिक सर्जन (AAOS) के अनुसार हड्डियों और मांसपेशियों का गलत तरीके से इस्तेमाल करना भी मस्कुलोस्केलेटल में एजिंग होने का कारण बन सकता है। साथ ही मोटापा, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, हाई ब्लड प्रेशर, दवाएं, हृदय रोग और मानसिक समस्याएं भी बुढ़ापा होने का कारण बन सकती हैं।
कुछ अध्ययनों के अनुसार स्वस्थ आहार लेना, नियमित रूप से व्यायाम करना, तनाव को कम करना आदि स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर समय से पहले बुढ़ापा आने की समस्या को काफी हद तक कम कर सकती है। इन तकनीकों को एंटी-एजिंग कहा जाता है, जिसमें प्राकृतिक या औषधीय दोनों प्रकार हैं। पिछले कुछ सालों में एंटी एजिंग तकनीकों पर अध्ययन किए जा रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से कोशिकाएं बूढ़ी होना, त्वचा में बुढ़ापा आना व अन्य स्थितियों का इलाज करने या फिर उन्हें कुछ समय के लिए टालने पर काम किया जा रहा है। ऐसा आमतौर पर इसलिए किया जाता है, ताकि आप लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकें। आगे इस लेख में एजिंग, प्रीमेच्योर एजिंग और एंटी एजिंग से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं।
एजिंग क्या है और क्यों होती है? - What is aging and why does it happen in Hindi?
एजिंग किसे कहते हैं?
बुढ़ापा आना एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो आमतौर पर जीवित प्राणियों में होती है जैसे मनुष्य, जानवर और पौधे आदि। वैज्ञानिक तौर पर भी अभी इस बात को समझा नहीं जा सका है कि उम्र बढ़ने पर लोगों के शरीर में ये बदलाव कैसे और क्यों आते हैं। कुछ अध्ययन बताते हैं कि बुढ़ापा आनुवंशिक बदलावों के रूप में भी होता है, जबकि कुछ अन्य अध्ययनों के अनुसार पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आना, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य कमजोर पड़ना और मेटाबॉलिज्म संबंधी समस्याएं भी बुढ़ापा आने का कारण बन सकती हैं। बुढ़ापा आने की स्थिति के बारे में अभी तक की सबसे मुख्य जानकारी यही मिल पाई है कि यह एक जटिल स्थिति है, जो हर व्यक्ति को अलग उम्र और अलग ही प्रकार से प्रभावित कर सकती है। यह जटिल समस्या कई कारणों पर निर्भर करती है, आनुवंशिकता, पर्यावरण, संस्कृति, आहार, व्यायाम, पहले की बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य और अंतर्निहित रोग शामिल हैं।
हर व्यक्ति में अलग-अलग तरीके से बुढ़ापा आता है, लेकिन जीवन के कुछ चरण हैं जिनमें बुढ़ापे के लक्षण जल्दी विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर यौवनावस्था और रजोदर्शन (महिला को पहली बार मासिक धर्म) प्रजनन परिपक्वता के साथ-साथ बुढ़ापा आने का भी एक संकेत है। इसी प्रकार गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति भी महिलाओं में बुढ़ापा आने का संकेत देते हैं। सामान्य तौर पर शोध यह बताते हैं कि बुढ़ापे के कुछ लक्षण 30 साल की उम्र के बाद ही दिखने लगते हैं, जबकि बाकी के अधिकतर लक्षण 50 साल की उम्र के बाद ही दिखते हैं। फिर भी यदि आपको कोई आनुवंशिक रोग, संक्रमण या फिर जीवनशैली ठीक न होने के कारण कोई अन्य शारीरिक समस्या हो गई है, तो समय से पहले बुढ़ापा आने की समस्या हो सकती है।
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स्वभाविक रूप से उम्र बढ़ने पर शरीर में क्या बदलाव होते हैं?
आपका शरीर कई विभिन्न अंगों, ऊतकों और कोशिकाओं से मिलकर बना होता है, जो एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं, ताकि शरीर अपने रोजाना की कार्य प्रक्रियाएं कर सके। जब आप बचपन और किशोरावस्था को पूरा करके वयस्क की उम्र में पहुंच जाते हैं, तो इस दौरान इन अंगों, ऊतकों और कोशिकाओं के कार्य करने की क्षमता पहले के मुकाबले थोड़ी कम होने लगती है। हालांकि, काम करने की क्षमता में बहुत ही कम अंतर होता है, इसलिए उसका पता नहीं लग पाता है। 50 से 60 साल की उम्र में आते-आते शरीर के काम करने की क्षमता काफी प्रभावित हो जाती है और बुढ़ापे के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखने लगते हैं। सामान्य तौर पर 50 की उम्र के बाद ही बुढ़ापे के मुख्य लक्षण दिखने लगते हैं, जैसे चेहरे की त्वचा में झुर्रिया पड़ना, प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होना, मानसिक क्षमता कम होना और मेटाबॉलिज्म धीरे काम करना आदि।
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समय से पहले एजिंग क्या है? - What is premature aging in Hindi?
प्रीमेच्योर एजिंग क्या है?
एजिंग एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो हर जीवित प्राणी को होती है, जबकि प्रीमेच्योर एजिंग पूरी तरह से अलग स्थिति है। प्रीमेच्योर एजिंग में व्यक्ति का शरीर उम्र की तुलना में पहले ही बूढ़ा हो जाता है। इस स्थिति को ठीक से समझने के लिए आपको यह पता होना चाहिए कि व्यक्ति की औसत उम्र क्या है, यानी वह कितने साल जिएगा। समय पर बढ़ापे का मतलब है कि आपमें एक तय समय पर बुढ़ापे के लक्षण दिख रहे हैं, जबकि बीमारी या कुछ अन्य कारणों से जल्दी आने वाले बुढ़ापे को प्रीमेच्योर एजिंग कहा जाता है।
इतना ही नहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनकी वास्तविक उम्र अधिक होने पर भी वे जवान दिखते हैं, जिसका मतलब है कि उनके शरीर में बुढ़ापे के लक्षण सामान्य से कम देखे गए हैं। यदि किसी व्यक्ति की उम्र के अनुसार उसमें एजिंग के अधिक लक्षण दिख रहे हैं, तो इसका मतलब है कि वह प्रीमेच्योर एजिंग से ग्रस्त है। कुछ अध्ययन किए गए, जिनमें पता चला कि जो गरीब क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और जिन लोगों को किसी कारण से स्वास्थ्य से संबंधी उचित जानकारी नहीं मिल पाती हैं, उनमें अधिकतर प्रीमेच्योर एजिंग के लक्षण देखे जाते हैं। इसके अलावा कुछ अंतर्निहित रोग (जैसे स्व प्रतिरक्षित रोग और कैंसर), जीवनशैली संबंधी खराब आदतें, धूम्रपान व शराब की लत भी समय से पहले बुढ़ापे के लक्षण पैदा कर सकती है।
हालांकि, एजिंग सिंड्रोम (प्रोजीरिया) भी प्रीमेच्योर एजिंग के समान प्रतीत हो सकता है। लेकिन, यह अलग स्थिति है। प्रोजीरिया आमतौर पर काफी छोटी उम्र में होता है, जिसमें बच्चे की उम्र तेजी से बढ़ने लगती है। प्रोजीरिया आमतौर पर वॉर्नर सिंड्रोम और हटकिन्सन-गिल्फॉर्ड सिंड्रोम के साथ देखा जाता है। प्रीमेच्योर एजिंग इन रोगों की तुलना में काफी धीमी गति से उम्र बढ़ाती है।
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