हाल में प्रकाशित हुए एक शोध में बताया गया है कि गर्मी के मौसम में चलने वाली गर्म हवाएं या लू से गर्भवती महिलाओं की प्रीमैच्योर डिलीवरी (समय से पहले बच्चे का जन्म) की आशंका बढ़ सकती है। प्रीमैच्योर डिलीवरी के कई कारण हो सकते हैं। पिछले कुछ अध्ययनों में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि इसकी एक वजह अत्यधिक गर्म मौसम भी हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन पर आधारित पत्रिका ‘एनवायरन्मेंटल इंटरनेशनल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पाया है कि गर्म मौसम समय से पहले बच्चे के जन्म का कारण बन सकता है। मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्भावस्था के 37वें सप्ताह से पहले बच्चे का जन्म होने से उसे कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

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प्रीमैच्योर या प्रीटर्म डिलीवरी क्या है?
जानकार बताते हैं कि अगर किसी बच्चे का जन्म डॉक्टरों द्वारा तय की गई तारीख से तीन हफ्ते पहले होता है तो इस स्थिति को प्रीमैच्योर डिलीवरी या समय से पहले प्रसव कहा जाता है। इस स्थिति में पैदा हुए बच्चे को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे- वजन धीरे बढ़ना, अपरिपक्व फेफड़े और दूध पीने में असमर्थ होना। यहां तक की बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।

क्या है वजह?
वैज्ञानिकों का मानना है कि गर्मी के कारण गर्भवती महिला में कार्डियोवस्कुलर स्ट्रैट (हृदय में तनाव) बढ़ जाता है, जो कि जल्दी लेबर पेन (प्रसव पीड़ा) की वजह बन सकता है। वैज्ञानिकों का दूसरा तर्क है कि उच्च तापमान से हार्मोन ऑक्सीटोसिन के स्तर में वृद्धि हो सकती है, जो लेबर पेन को प्रेरित करने में भूमिका निभाता है।

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कैसे की गई रिसर्च?
एनवायरन्मेंटल इंटरनेशनल के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने साल 2005 से 2013 की गर्मियों के आंकड़ों को खंगाला। इनके जरिये अमेरिका के कैलिफोर्निया की ऐसी 20 लाख महिलाओं को ट्रैक किया गया, जिन्होंने इस अवधि में गर्भधारण किया था। इनमें केवल उन्हीं महिलाओं को शामिल किया गया था, जिन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया था, ना कि जुड़वा बच्चों को।

गर्म हवाओं से होने वाली प्रीमैच्योर डिलीवरी का पता करने के लिए शोधकर्ताओं ने एक योजना तैयार की। उन्होंने गर्म हवाओं की तीव्रता को समझने के लिए तापमान को चार हिस्सों में बांटा। फिर अलग-अलग इलाकों के जिप कोड्स की मदद से तापमान से संबंधित रिकॉर्ड निकाले और उनके आधार पर गर्भधारण की अवधि की तुलना की गई। इस गणना के बाद मिले आकंड़ों से पता चला कि कुल 6.72 प्रतिशत बच्चे समय से पहले (प्री-मैच्योर) जन्मे थे।

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जलवायु परिवर्तन भी एक कारण
शोधकर्ताओं ने पाया कि तापमान के बढ़ने के साथ समय पहले जन्म लेने वाले बच्चों का प्रतिशत बढ़ गया था। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब शोधकर्ताओं ने पाया कि मौसम में बदलाव का असर बच्चे के जन्म से जुड़ा है। रिपोर्टें बताती हैं कि जलवायु परिवर्तन से भी प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा हो सकता है।

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पहले अपने शोधों में दावा किया है कि तापमान बढ़ने से भी समय से पहले होने वाले प्रसव के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। शोधकर्ताओं की मानें तो जब भी तापमान 33.2  डिग्री सेल्सियस या 90 डिग्री फारेनहाइट तक गया है तो प्रति एक लाख महिलाओं में समय से पहले होने वाले प्रसव की दर 0.97 हुई है। वहीं, जब तापमान बहुत ज्यादा गर्म नहीं था तो समय से पहले जन्म दर 0.57 प्रतिशत थी।

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