एक्लेम्पसिया क्या है?
एक्लेम्पसिया एक दुर्लभ स्थिति है, जो हर साल 2,000 से 3,000 गर्भवती महिलाओं में से किसी एक को प्रभावित करती है। इसके अलावा प्रीक्लेम्पसिया से ग्रस्त 200 महिलाओं में से किसी एक को एक्लेम्पसिया होता है। यह तब होता है जब प्रीक्लेम्पसिया से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं में दौरे या कोमा जैसी गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
यहां तक कि अगर किसी महिला को पहले कभी दौरे पड़ने की समस्या नहीं थी, तो भी उसे एक्लेम्पसिया हो सकता है। वर्तमान में कुछ एजेंसियां इस विषय पर शोध कर रही हैं कि इस बीमारी का सटीक कारण क्या है और इसे कैसे रोका व इलाज किया जा सकता है। अगर इस बीमारी का उपचार न किया जाए तो यह खतरनाक रूप ले सकती है।
- एक्लेम्पसिया के लक्षण - Eclampsia ke lakshan
- एक्लेम्पसिया के कारण - Eclampsia ke karan
- एक्लेम्पसिया का इलाज - Eclampsia ka ilaj
- सारांश
एक्लेम्पसिया के लक्षण - Eclampsia ke lakshan
चूंकि, प्रीक्लेम्पसिया से कारण एक्लेम्पसिया हो सकता है इसलिए गर्भवती महिला में दोनों स्थितियों के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। अगर आप किसी स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त हैं तो डॉक्टर को उसके बारे में जरूर बताएं, ताकि वे संभावित कारणों की पहचान कर सकें। एक्लेम्पसिया से पहले इससे जुड़े प्रीक्लेम्पसिया के लक्षणों के बारे में जान लेते हैं:
- हाई बीपी
- चेहरे या हाथों में सूजन
- सिरदर्द
- अधिक वजन बढ़ना
- जी मचलाना और उल्टी
- नजर से संबंधित समस्याएं जिसमें कम दिखना या धुंधला दिखना शामिल है
- पेशाब करने में दिक्कत
- पेट में दर्द (विशेष रूप से पेट के ऊपर दाईं तरफ)
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एक्लेम्पसिया के मरीजों में भी ऊपर बताए गए लक्षण दिख सकते हैं या ऐसा भी हो सकता है कि एक्लेम्पसिया की शुरुआत से पहले कोई लक्षण दिखाई न दें। एक्लेम्पसिया के सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
एक्लेम्पसिया के कारण - Eclampsia ke karan
एक्लेम्पसिया अक्सर प्रीक्लेम्पसिया के बाद होता है, जिसमें गर्भावस्था के दौरान हाई बीपी की समस्या होती है। इसके अलावा इस स्थिति में पेशाब में प्रोटीन भी आ सकता है। यदि प्रीक्लेम्पसिया की स्थिति खराब हो जाती है और यह मस्तिष्क को प्रभावित करने लगती है तो ऐसे में दौरे पड़ते हैं और इस स्थिति को एक्लेम्पसिया के रूप में जाना जाता है।
डॉक्टरों को अभी तक प्रीक्लेम्पसिया के सटीक कारण का पता नहीं चल पाया है, लेकिन उनका मानना है कि असामान्य तरीके से गर्भनाल बनने और इसके असामान्य कार्य करने की वजह से ऐसा हो सकता है। इसके अलावा कुछ अन्य कारक भी हो सकते हैं:
- रक्त वाहिका से संबंधित समस्याएं
- मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र (न्यूरोलॉजिकल) से जुड़े कारक
- आहार
- जीन
एक्लेम्पसिया का इलाज - Eclampsia ka ilaj
एक्लेम्पसिया के लक्षणों को ठीक करने का एकमात्र तरीका है गर्भवती महिला की डिलीवरी करवाना। एक्लेम्पसिया के साथ प्रेग्नेंसी जारी रखने पर जटिलताएं हो सकती हैं। डिलीवरी से पहले डॉक्टर नीचे बताई गई बातों पर ध्यान देते हैं:
- डिलीवरी का समय तय करने से पहले डॉक्टर बीमारी की गंभीरता के साथ-साथ ये देखते हैं कि गर्भ में शिशु का कितना विकास हो चुका है।
- यदि डॉक्टर आपमें प्रीक्लेम्पसिया के हल्के लक्षणों का निदान करते हैं, तो वे स्थिति को लगातार मॉनिटर कर सकते हैं और इस स्थिति को एक्लेम्पसिया में बदलने से रोकने के लिए दवा दे सकते हैं।
- गंभीर रूप से प्रीक्लेम्पसिया या एक्लेम्पसिया से ग्रस्त महिलाओं को डॉक्टर जल्दी प्रसव का सुझाव दे सकते हैं। प्रभावित महिला के लिए देखभाल की योजना इस बात पर निर्भर करेगी कि बीमारी की गंभीरता क्या है और प्रेग्नेंसी कितने महीने की हो चुकी है।
- उपचार के तौर पर दौरों को रोकने के लिए डॉक्टर दवा दे सकते हैं।
- इसके अलावा वे हाई बीपी को कंट्रोल करने के लिए भी दवा लिख सकते हैं। यदि बीपी फिर भी हाई रहता है तो प्रसव करवाने की जरूरत पड़ सकती है।
वैसे ज्यादातर मामलों में, बच्चे के जन्म के बाद छह सप्ताह के अंदर एक्लेम्पसिया के लक्षण अपने आप ठीक हो जाते हैं। हालांकि, दुर्लभ मामलों में ये महत्वपूर्ण अंगों को हमेशा के लिए नुकसान पहुंचा सकते हैं। यही कारण है कि गर्भवती महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान दिखने वाले किसी भी लक्षण के बारे में डॉक्टर को जरूर बताना चाहिए।
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एक्लेम्पसिया के लक्षण, कारण, इलाज के डॉक्टर

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