बीमा पॉलिसियों में कई ऐसे शब्द होते हैं, जो अक्सर सुनने में सरल जबकि समझने में जटिल लग सकते हैं। ऐसे में किसी भ्रम से बचने के लिए इन शब्दों का सही मतलब पता होना जरूरी है। हेल्थ इन्शुरन्स प्लान लेते समय पॉलिसीधारक की कई जिम्मेदारियों में एक से है - सम इनश्योर्ड यानी बीमा राशि के बारे में सही निर्णय लेना। चूंकि सम इनश्योर्ड ही वह राशि है, जिसके आधार पर आपका प्रीमियम तय होता है। ऐसे में बीमा राशि क्या है या आपके लिए कितनी बीमा राशि सही रहेगी? ज्यादा बीमा राशि और कम बीमा राशि से क्या फायदे व घाटे हैं, इन सभी प्रश्नों के जवाब नीचे आर्टिकल में दिए गए हैं।

  1. बीमा राशि क्या है - Sum Insured meaning in Hindi
  2. बीमा राशि का प्रीमियम पर क्या प्रभाव पड़ता है? - Impact of the sum insured on the premium in Hindi
  3. उचित बीमा राशि का चुनाव कैसे करें? - How to choose the right sum insured in Hindi
  4. सम एश्योर्ड क्या है? - What is Sum Assured in Hindi
  5. सम इनश्योर्ड और सम एश्योर्ड में अंतर - Sum Insured vs Sum Assured in Hindi
  6. सम इनश्योर्ड से जुड़ी जरूरी बातें - Important things related to Sum Insured in Hindi
  7. निष्कर्ष - Conclusion

किसी पॉलिसीधारक को उसकी बीमा कंपनी की ओर से मिलने वाली अधिकतम राशि ही बीमा राशि या सम इनश्योर्ड कहलाती है। दूसरी तरफ बीमा कंपनी तभी किसी पॉलिसीधारक को बीमा की राशि देती है, जब वह कंपनी के नियम व शर्तों के तहत क्लेम करता है। बीमा राशि अलग-अलग इन्शुरन्स में अलग-अलग तरह से फायदा देती है।

हेल्थ इन्शुरन्स में बीमा राशि किस तरह से लाभ देती है?

यदि आप किसी स्वास्थ्य संबंधी वजह से अस्पताल में भर्ती होते हैं, तो हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी बीमा राशि तक के बराबर आपको कवरेज देगी। अब मान लीजिए, यदि वास्तविक खर्च बीमा राशि से अधिक है, तो ऐसे में अतिरिक्त राशि पॉलिसीधारक को अपने जेब से भरने होगी।

उदाहरण : X नाम के व्यक्ति के पास 5 लाख रुपये की हेल्थ इन्शुरन्स बीमा पॉलिसी है। अब यदि उसके सामने अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आती है, जिसमें 4 लाख रुपये तक का खर्चा आता है, तो ऐसे में X को कोई पैसा नहीं देना होगा, इसकी जगह बीमा कंपनी उस अस्पताल के साथ कॉन्टैक्ट करके क्लेम सेटेलमेंट कर लेगी।

अब मान लीजिए, X को उसी साल दोबारा से किसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी परेशानी की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, जिसमें 1.25 लाख रुपये का खर्चा आता है, तो ऐसे में बीमा कंपनी सिर्फ एक लाख रुपये तक की ही करवेज देगी, क्योंकि चार लाख का क्लेम वह पहले ही कर चुका है। जबकि बीमा राशि से अतिरिक्त रकम (यानी 25 हजार) का भुगतान X को खुद से करना होगा।

(और पढ़ें - हेल्थ इन्शुरन्स क्लेम सेटलमेंट के दौरान पॉलिसीधारक की जिम्मेदारियां)

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जब भी बीमित व्यक्ति के साथ स्वास्थ्य संबंधी अप्रत्याशित घटना होती है, तो ऐसे में हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी उस खर्चे को कवर करती है। अब यह कोई नहीं जानता कि किस तरह की घटना हो सकती है या उस घटना में कितना खर्च आ सकता है। ऐसे में हमें हमेशा बीमा राशि का चुनाव करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रीमियम उतना हो, जितना आप आसानी से मैनेज कर पाएं, नहीं तो आपके बजट पर फर्क पड़ सकता है। दूसरा, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीमा राशि जितनी अधिक होगी प्रीमियम और कवरेज भी उतना ही ज्यादा होगा, जबकि बीमा राशि कम होने पर प्रीमियम के साथ-साथ कवरेज भी कम हो सकता है। ऐसे में खुद को व परिवार को स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से बचाने व बीमा राशि तय करने के लिए अपनी कुल कमाई का आकलन करने की जरूरत होती है।

ध्यान रहे, कई बार ज्यादा कवरेज के चक्कर में समय पर प्रीमियम चुकाने में दिक्कत आती है। हालांकि, प्रीमियम जमा करने की तिथि निकल जाने पर ग्रेस पीरियड का समय मिलता है, लेकिन यदि ग्रेस पीरियड में भी प्रीमियम नहीं चुकाया जाता है तो ऐसे में पॉलिसी रद्द की जा सकती है।

आपके लिए बीमा राशि कितनी होनी चाहिए, यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है :

आयु : बीमा राशि तय करने में आयु महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आप जितनी कम उम्र में हेल्थ इन्शुरन्स लेते हैं, उतना कम प्रीमियम देना होगा। ज्यादा उम्र में हेल्थ इन्शुरन्स लेने पर प्रीमियम में भी बढ़ोतरी होगी, क्योंकि आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बीमारी का ​जोखिम भी बढ़ता जाता है। यही कारण है कि आपको अधिकतम बीमा राशि लेने का सुझाव दिया जाता है और 18 वर्ष के बाद आप अपने लिए इंडिविजुअल हेल्थ इन्शुरन्स खरीद सकते हैं।

वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति : एक उचित बीमा राशि का चुनाव करते समय आपको अपनी व परिवार के सदस्यों की वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए। इसके लिए आपको मेडिकल हिस्ट्री का भी आकलन करने की जरूरत है, क्योंकि पहले से मौजूद बीमारियां कई बार अस्पताल में भर्ती होने के जोखिमों को बढ़ा देती हैं।

जीवनशैली : अक्सर नौकरी या बिजनेस शुरू करने के बाद जीवन व्यस्त हो जाता है और ऐसे में तनाव होना सामान्य बात है। कई नौकरियों में टारगेट होते हैं, जिन्हें कर्मचारियों को पूरा करना होता है, ऐसे में तनाव बहुत अधिक बढ़ जाता है और धीरे-धीरे यह कई बीमारियों का कारण बन सकता है। इसकी वजह से सिरदर्द, पेट खराब होना, हाई ब्लड प्रेशर, सीने में दर्द, यौन स्वास्थ्य पर असर और नींद में गड़बड़ी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा तनाव से भावनात्मक समस्याएं जैसे अवसाद, पैनिक अटैक और एंजायटी भी हो सकती है। ऐसे में अपनी जीवनशैली पर गौर करें, यह उचित बीमा राशि चुनने में आपकी मदद करेगा।

आय : आय पर ध्यान देने के लिए आपको छोटी सी कैलकुलेशन करने की जरूरत है। मान लीजिए आपको इन्शुरन्स लेना है और आपकी उम्र है 30 साल, जबकि आप 58 साल तक ही काम कर सकते हैं, इसके बाद रिटायर हो जाएंगे। तो इस हिसाब से आप महज अगले 28 साल तक ही कमाई कर सकते हैं, जो कि आपकी बीमा राशि पर प्रभाव डाल सकता है।

वार्षिक खर्चों का तैयार करें चार्ट : वार्षिक खर्चों पर ध्यान देने का मतलब उस फ्रीक्वेंस की पहचान करना है, जिसके तहत आप प्रीमियम जमा कर सकते हैं :

चल रहे खर्चों जैसे कि मकान या कमरे का किराया, स्कूल की फीस, ईंधन का खर्च, स्वास्थ्य देखभाल खर्च, किराना और शौक व मनोरंजन से जुड़े खर्च आदि पर ध्यान दें। इसके अलावा छुट्टियों में बाहर जाना, उपहार देना जैसे बार-बार होने वाले खर्चों पर भी विचार करें। यदि आप एक बजट बना लेंगे तो आपके लिए ​स​म इन्श्योर्ड का चुनाव करना मुश्किल काम नहीं रहेगा।

लक्ष्य का रखें ध्यान : जीवन में एक नहीं कई बार ऐसा समय आ सकता है, जब आपके परिवार को बड़ी एकमुश्त राशि की आवश्यकता हो सकती है। इनमें शादी, उच्च शिक्षा, विदेश यात्रा, सेवानिवृत्ति आदि शामिल हैं।

यदि आप पहले से ही इन स्थितियों के लिए बचत कर रहे हैं, तो यह आपको अंदाजा लगाने में मदद करेगा कि स​म-इन्श्योर्ड के लिए कितना प्रीमियम आप मैनेज कर सकते हैं।

सुनिश्चित करें कि आप अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बचत करें और यदि आप वर्तमान में बचत कर रहे हैं तो मानकर चलें कि आगे इससे भी ज्यादा करनी पड़ सकती है। उदाहरण के लिए, यदि आप अब से 3 साल बाद अपने पहले बच्चे की प्लानिंग करना चाहते हैं, तो आपके बच्चे के जन्म के बाद उसकी देखभाल की लागत के लिए ज्यादा पैसे की जरूरत होगी।

देनदारियां जोड़ें, बचत और निवेश घटाएं : अपनी सभी देनदारियों जैसे कार लोन, पर्सनल लोन, हाउस लोन या अन्य किसी प्रकार के लोन का ध्यान रखें। जो खर्चे अनावश्यक हैं उनसे बचें। इसके अलावा इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइट मौजूद हैं, जिन पर जाकर आप यह कैलकुलेट कर सकेंगे कि कितनी बीमा राशि के लिए कितना प्रीमियम बनेगा। इसके अलावा आप यह भी जान सकेंगे कि वह प्रीमियम आपको कितने समय तक देना है और मासिक, त्रैमासिक, छह महीने या सालभर पर प्रीमियम भरने पर कितना अंतर आएगा।

(और पढ़ें - सबसे अच्छा हेल्थ इन्शुरन्स कौन सा है)

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सम एश्योर्ड के बारे में इसलिए समझना जरूरी है क्योंकि बोलने में यह टर्म सम इनश्योर्ड से बहुत मिलता-जुलता है, लेकिन इसका अर्थ बिल्कुल अलग है।

बीमा में सम एश्योर्ड एक ऐसा महत्वपूर्ण टर्म है, जिसे आपको जरूर जानना चाहिए। सम एश्योर्ड एक पूर्व-निर्धारित राशि है, जिस पर बीमा कंपनी आपको या आपके नॉमिनी व्यक्ति को भुगतान करने के लिए सहमत होती है। इसमें बीमा कंपनी दो तरह से ग्राहक को भुगतान करती है - पहला, यदि कोई घटना हो जाए जो बीमा कंपनी द्वारा कवर किया जाता हो और दूसरा, जब इन्शुरन्स टर्म खत्म हो जाता है। बीमा में सम एश्योर्ड का निर्धारण पॉलिसी खरीदते समय किया जाता है और यह राशि पूरे पॉलिसी अवधि के दौरान बदली नहीं जा सकती है। इसके अलावा सम एश्योर्ड के आधार पर ही प्रीमियम भी निर्धारित होता है। इसमें जब बीमाकर्ता आपको या आपके नामांकित व्यक्ति को बीमा राशि का भुगतान करता है, तो पॉलिसी वहीं समाप्त हो जाती है।

सम एश्योर्ड जैसा कॉन्सेप्ट लाइफ इन्शुरन्स और गारंटीड रिटर्न इन्शुरन्स पॉलिसियों पर लागू होता है। गारंटीड रिटर्न बीमा योजना में आपको अपनी पसंद के तरीके से सुनिश्चित रिटर्न मिलता है। इसमें आप एकमुश्त, नियमित रूप से मिलनी वाली आय या लाइफ इनकम बेनेफिट के रूप में रिटर्न लेने का विकल्प चुन सकते हैं। यह प्लान आपके परिवार की सुरक्षा के लिए गारंटीड बीमा कवर देता है।

उचित सम एश्योर्ड चुनने से आपके न रहने की स्थिति में परिवार को वित्तीय समस्याओं से जूझना नहीं पड़ता है, यह परिवार के भविष्य को सुरक्षित रखने का एक बढ़िया माध्यम है। आप एड-ऑन राइडर्स के माध्यम से भी गारंटीड रिटर्न बीमा योजना को बढ़ा सकते हैं।

सम एश्योर्ड के फायदे

आप अपने प्रीमियम का भुगतान अपनी पसंदीदा फ्रीक्वेंसी पर भी कर सकते हैं जैसे- वार्षिक, अर्ध-वार्षिक, त्रैमासिक या मासिक। इसके अलावा आप अपनी गारंटीड जीवन बीमा योजना पर लोन भी ले सकते हैं। भारत में गारंटीड बीमा योजनाओं पर टैक्स नहीं लगता है।

इन योजनाओं के लिए आपके द्वारा भुगतान किया जाने वाला प्रीमियम आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80C के तहत टैक्स फ्री होता है। जबकि डेथ बेनेफिट (मृत्यु होने पर मिलने वाला लाभ) और पॉलिसी मैच्योर होना दोनों ही अंडर सेक्शन 10 (10D) के तहत टैक्टस फ्री हैं।

उदाहरण के लिए मान लीजिए आपने 15 लाख रुपये गारंटीड रिटर्न बीमा योजना में निवेश किया है और पॉलिसी टेन्योर के दौरान आपकी मृत्यु हो जाती है, तो ऐसे में आपके द्वारा नामांकित व्यक्ति को पूरा पैसा यानी 15 लाख रुपये का भुगतान कर दिया जाएगा।

(और पढ़ें - स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा के बीच अंतर)

  • सम इनश्योर्ड : यह गैर-जीवन बीमा योजनाओं जैसे होम इन्शुरन्स, मोटर इन्शुरन्स, हेल्थ इन्शुरन्स आदि पर लागू होता है।
  • सम एश्योर्ड : यह जीवन बीमा और गारंटीड रिटर्न बीमा पॉलिसियों पर लागू होता है।
  • सम इनश्योर्ड : यह रिइम्बर्समेंट के आधार पर केवल नुकसान या क्षति की राशि का भुगतान करता है।
  • सम एश्योर्ड : इसमें पॉलिसी के कार्यकाल के दौरान बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाए या पॉलिसी मैच्योर हो जाने के बाद बीमाकर्ता या नॉमिनी को पूर्व-निर्धारित राशि का भुगतान किया जाता है।
  • सम इनश्योर्ड : इसमें आमतौर पर पैसा हाथ में नहीं आता है, उसके बदले आपको सर्विस मिलती है। लेकिन रिइम्बर्समेंट के मामले में पैसा मिल सकता है। रिइम्बर्समेंट में पहले बिल का पेमेंट किया जाता है, इसके बाद बीमा कंपनी को जरूरी कागजात दिखाने होते हैं और फिर कंपनी पैसा वापस कर देती है।
  • सम एश्योर्ड : इसमें मौद्रिक लाभ (पैसा) का भुगतान बीमित व्यक्ति या नामांकित व्यक्ति को किया जाता है।

आमतौर पर जीवन बीमा योजनाएं 'सम एश्योर्ड' देती हैं और गैर-जीवन बीमा पॉलिसियां 'सम इनश्योर्ड' देती हैं। लेकिन बीमा कंपनियों ने आजकल ऐसी पॉलिसियां पेश करना शुरू कर दिया है, जो आपके मेडिकल बिलों के रिइम्बर्समेंट के साथ-साथ पूर्व-निर्धारित लाभ देती हैं। इस तरह की दोहरी-लाभ योजना गैर-जीवन और जीवन बीमा कंपनियों दोनों द्वारा पेश की जाती हैं। इस तरह का एक सामान्य उदाहरण क्रिटिकल इलनेस प्लान है, जो बीमाधारक को पॉलिसी में मौजूद किसी भी बीमारी जैसे लकवा, दिल का दौरा या कैंसर से पीड़ित होने पर एकमुश्त लाभ देती है। उदाहरण के लिए हॉस्पिटल कैश पॉलिसी को ले लीजिए, जिसमें बीमित व्यक्ति जब तक अस्पताल में भर्ती रहता है तब तक उसे पूर्व-निर्धारित सीमा तक रोजाना नकद दिया जाता है। इसी तरह, सर्जिकल बेनिफिट प्लान पॉलिसीधारक को सर्जरी के मामले में पूर्व-निर्धारित बीमा राशि का हकदार बनाता है।

(और पढ़ें - सबसे सस्ता स्वास्थ्य बीमा कौन सा है)

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दिन पर दिन मेडिकल खर्च तेजी से बढ़ रहे हैं और कोरोना काल में तो यह खर्च और भी बढ़ गए हैं। अस्पताल से जुड़े शुल्क आम आदमी के लिए एक बड़ा बोझ हैं। ऐसे में, हमेशा यही सलाह दी जाती है कि बड़ी बीमा राशि का चुनाव करें, क्योंकि बीमा राशि जितनी बड़ी होगी, सुरक्षा भी उतनी अधिक होगी।

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