तंत्रिका तंत्र खासतौर पर तंत्रिका तंतुओं के क्षतिग्रस्त होने या ठीक तरह से कार्य न कर पाने के कारण नसों में दर्द (न्यूरोपैथिक पेन) हो सकता है। ये दर्द मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी या परिधीय तंत्रिकाओं से उत्पन्न हो सकता है। ये दर्द अचानक से उठ सकता है और नसों में चुभने जैसा दर्द हो सकता है या सुन्नपन या झुनझुनाहट महसूस हो सकती है या ठंड में जाने या किसी बाहरी दबाव के कारण नसों में दर्द हो सकता है। आमतौर पर नसों में दर्द का संबंध नींद आने में दिक्कत और भावनात्मक समस्याओं से होता है।
नसों में दर्द के आयुर्वेदिक उपचार में इस स्थिति को पैदा करने वाले अंतर्निहित कारण का इलाज कर व्यक्ति को दर्द से राहत दिलाई जाती है। न्यूरोपैथिक पेन का इलाज प्रमुख तौर पर निदान परिवार्जन (रोग के कारण को दूर करना), स्नेहन (तेल लगाने की विधि), स्वेदन (पसीना लाने की विधि), विरेचन (दस्त की विधि), बस्ती (एनिमा), नास्य (नाक से औषधि डालने की विधि) और रक्तमोक्षण (दूषित खून निकालने की विधि) से किया जाता है। नसों में दर्द के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कुछ जड़ी बूटियों और औषधियों में भूमिआमलकी, हरिद्रा (हल्दी), बला (खिरैटी), वसंतकुसुमाकर, शिरःशूलादि वज्र रस और महावात विध्वंसन रस का नाम शामिल है।
- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से नसों में दर्द - Ayurveda ke anusar naso me dard
- नसों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Neuropathic pain ka ayurvedic upchar
- नसों में दर्द की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Neuropathic pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार नसों में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar nerve pain me kya kare kya na kare
- नसों में दर्द में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Nerve pain ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- नसों में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Naso me dard ki ayurvedic dawa ke side effects
- नसों में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Naso ke dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से नसों में दर्द - Ayurveda ke anusar naso me dard
आयुर्वेद के अनुसार वात दोष तंत्रिका तंत्र और इसके कार्यों को नियंत्रित करता है। इस प्रकार तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों के प्रमुख कारणों में एक वात का खराब होना भी शामिल है। चूंकि, न्यूरोपैथिक पेन एक ऐसी स्थिति है जो केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है इसलिए निम्न वात रोगों के कारण भी यह समस्या हो सकती है:
- डायबिटिक न्यूरोपैथी:
यह समस्या डायबिटीज के मरीजों में ज्यादा देखी जाती है। इसमें डायबिटीज के मरीज को खासतौर पर हाथों और टांगों में जलन, दर्द, झनझनाहट और सुन्नपन महसूस होता है। वात दोष के कारण दर्द और झनझनाहट महसूस होती है जबकि जलन की वजह पित्त दोष है। डायबिटिक न्यूरोपैथी में व्यक्ति को ठंडा, गर्म और कंपन महसूस होना भी बंद हो जाता है।
- गृधरसि (साइटिका):
इस स्थिति में कूल्हों की नसों से दर्द शुरु होता है। इसमें हल्का या तेज दर्द हो सकता है और दर्द नितंबों की नसों से होकर जांघों और फिर इसके निचले हिस्सों में पहुंच सकता है। कभी-कभी ये न्यूरोपैथिक पेन पैरों तक पहुंच जाता है। आयुर्वेद के अनुसार साइटिका की वजह से एक या दोनों टांगों में चुभने वाला दर्द, अकड़न, झनझनाहट महसूस हो सकती है और ये प्रमुख तौर पर पिंडली की मांसपेशियों, घुटनों के जोड़, कमर के निचले और ऊपरी हिस्से को प्रभावित करता है। साइटिका केवल वात या कफ एवं वात के एक साथ खराब होने के कारण हो सकता है। कफ के साथ वात में असंतुलन आन पर सुस्ती, भारीपन और स्वाद में कमी आने जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं।
- विसर्प (दाद):
एक फैलने वाला त्वचा रोग है जो कि वायरल संक्रमण के कारण होता है और इसके अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं। ये सात धातुओं और त्रिदोष में से किसी भी एक में असंतुलन के कारण हो सकता है। प्रभावित धातु और दोष के आधार पर लक्षण भिन्न हो सकते हैं। विसर्प के सबसे सामान्य लक्षणों में सुन्नपन, बुखार, अकड़न, चुभने वाला दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन और भूख में कमी शामिल हैं। विसर्प के कारण पोस्ट-हर्पेटिक न्यूराल्जिया (नसों और त्वचा को प्रभावित करने वाली दर्दभरी स्थिति) होता है जिससे नसों में दर्द पैदा होता है।
- अनंत वात (ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया):
ये स्थिति ट्राइजेमिनल नसों (चेहरे पर सनसनाहट महसूस करवाने वाली नस) को प्रभावित करती है। ट्राइजेमिनल नस चेहरे की त्वचा और सिर के आगे वाले हिस्से में स्थित होती हैं। ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया की स्थिति अकेले वात या कफ के साथ वात दोष के प्रमुख रूप से असंतुलित होने के कारण पैदा होती है। इस स्थिति में वात के खराब होने के कारण गर्दन में तेज दर्द, गालों का फड़कना, जबड़े की मांसपेशियों में ऐंठन होती है। ये आंखों को भी प्रभावित करता है। आचार्य सुश्रुत ने इस बीमारी का उल्लेख करते हुए कहा है कि यह स्थिति तीनों दोषों के खराब होने के कारण पैदा होती है।
नसों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Neuropathic pain ka ayurvedic upchar
- निदान परिवार्जन
- निदान परिवार्जन में बीमारी के कारण को दूर किया जाता है।
- चूंकि, नसों में दर्द का प्रमुख कारण वात दोष में असंतुलन आना है इसलिए न्यूरोपैथिक पेन के इलाज में वात बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन न करना महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- निदान परिवार्जन के स्थिति एवं रोग को बढ़ने और दोबारा होने से रोकता है।
- स्नेहन
- स्नेहन थेरेपी में शरीर को बाहरी और आंतरिक रूप से चिकना किया जाता है जिससे शरीर में जमे अपशिष्ट पदार्थ नष्ट हो जाते हैं और बढ़े हुए वात में संतुलन आता है।
- स्नेहन वात रोगों जैसे कि साइटिका और ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में असरकारी है। इन स्थितियों के कारण पैदा हुए न्यूरोपैथिक पेन को स्नेहन से दूर किया जा सकता है।
- स्वेदन
- स्वेदन में विभिन्न उपकरणों जैसे कि धातु की वस्तु, कपड़े, गर्म हाथों आदि से शरीर या प्रभावित हिस्से पर पसीना लाया जाता है।
- ये शरीर से अतिरिक्त दोष को साफ एवं संतुलित करने में मदद करता है।
- स्वेदन अमा को पतला कर उसे पाचन मार्ग में लाता है, जहां से अमा को पंचकर्म थेरेपी की विभिन्न चिकित्साओं जैसे कि विरेचन और बस्ती के जरिए शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
- ये रक्त प्रवाह में सुधार लाता है। यह सभी वात से संबंधित विकारों के लिए सबसे बेहतरीन चिकित्साओं में से एक है।
- नसों में दर्द का संबंध प्रमुख तौर पर वात दोष से होता है। इस प्रकार के दर्द के इलाज में स्वेदन लाभकारी साबित हो सकता है।
- विरेचन
- विरेचन कर्म में दस्त लाने और शरीर से अमा एवं बढ़े हुए दोष को हटाने के लिए जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है।
- ये प्रमुख तौर पर त्वचा विकार के लिए जिम्मेदार असंतुलित पित्त दोष को हटाने में असरकारी है। इस प्रकार विसर्प (दाद) और इससे संबंधित लक्षणों जैसे कि नसों में दर्द को नियंत्रित करने के लिए विरेचन का उपयोग किया जा सकता है।
- विरेचन साइटिका और ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया से संबंधित नसों में दर्द को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
- बस्ती
- पंचकर्म थेरेपी में से एक बस्ती कर्म में काढ़े, तेल या पेस्ट के रूप में हर्बल एनिमा दिया जाता है।
- बस्ती आंतों को साफ करती है और शरीर से असंतुलित दोष एवं अमा को नष्ट करती है।
- दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और लेखन गुण के कारण अरंडीमूल बस्ती शरीर से अकड़न और भारीपन को दूर करने में उपयोगी है जिससे असंतुलित कफ को ठीक किया जाता है।
- ये बढ़े हुए वात को भी साफ करता है और इसमें सूजन-रोधी, एंटीऑक्सीडेंट, दर्द निवारक और हड्डियों को पुर्नजीवित करने वाले गुण होते हैं।
- नास्य
- नास्य में जड़ी बूटियों को काढ़े या तेल के रूप में नासिक गुहा में डाला जाता है।
- चूंकि, नाक को मस्तिष्क का द्वार माना जाता है इसलिए ये सिर से दूषित दोष को साफ करने में मदद करता है।
- इस चिकित्सा से सिर की नाडियां खुल जाती हैं और सिर, नाक, आंखों, मुंह, कानों और पैरानेसल साइनस (चार हवा से भरे स्थानों के जोड़ों का समूह जो नासिक गुहा को घेरते हैं) से अमा (विषाक्त पदार्थ) साफ होती है। इससे सिर और शरीर में हल्कापन आता है।
- नास्य में इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटियां हैं विडंग, बृहती, अपामार्ग और सहजन।
- नास्य साइनोसाइटिस, जुकाम और एलर्जिक राइनाइटिस जैसी स्थितियों के इलाज में उपयोगी है।
- ये कानों और आंखों से संबंधित समस्याओं जैसे कि सुनने की क्षमता कम होना और टिनिटस (कान बजना), खुजली एवं आंखों से पानी आना, कंजक्टिवाइटिस तथा ग्लूकोमा के इलाज में मददगार है।
- ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया को नियंत्रित करने के लिए बादाम रोगन तेल का इस्तेमाल किया जाता है।
- कटि बस्ती
- इस चिकित्सा में आटे से बने फ्रेम को कमर पर रखा जाता है और फिर उसमें गर्म तेल भरा जाता है। इसके बाद इस फ्रेम को कुछ समय के लिए त्वचा के संपर्क में ही रखा जाता है। तेल को समय-समय पर बदलते रहना पड़ता है।
- इस चिकित्सा में त्वचा को चिकना और पसीना लाया जाता है जिससे अमा और असंतुलित दोष को साफ करने में मदद मिलती है।
- ये साइटिका और उन स्थितियों के इलाज में उपयोगी है जिनके लक्षण साइटिका की तरह ही होते हैं।
- रक्तमोक्षण
- रक्तमोक्षण में धातु के उपकरण, गाय के सींग, जोंक या सूखे करेले के जरिए शरीर से अशुद्ध खून को निकाला जाता है।
- अशुद्ध खून को निकालने से शरीर से विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं और सेहत में सुधार एवं लक्षणों से राहत मिलती है। ये बढ़े हुए दोष जैसे कि वात और पित्त को साफ करने में भी मदद करता है।
- ये चिकित्सा साइटिका के कारण हुए नसों में दर्द के इलाज में उपयोगी हो सकती है। चूंकि, विसर्प की समस्या रक्त के खराब होने के कारण होती है इसलिए विसर्प को नियंत्रित करने में भी रक्तमोक्षण असरकारी हो सकता है।
नसों में दर्द की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Neuropathic pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
नसों में दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- भूमि आमलकी
- भूमि आमलकी पाचन, मूत्राशय और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें तीखे, संकुचक (ऊतकों को एक साथ रखने वाले) और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं।
- इस जड़ी बूटी को बढ़े हुए वात दोष को साफ करने और वात से संबंधित कई रोगों का इलाज करने के लिए जाना जाता है।
- भूमि आमलकी पित्त और कफ दोष को भी साफ करने में उपयोगी है। इस प्रकार ये पित्त और कफ दोष के असंतुलित होने के कारण पैदा हुए दर्द और जलन को दूर करती है।
- डायबिटिक न्यूरोपैथी में ठंडा, गर्म और कंपन का अहसास होना बंद हो जाता है। भूमि आमलकी इस समस्या को भी दूर करती है। इसलिए डायबिटीज में होने वाले नसों में दर्द के इलाज में इस जड़ी बूटी का इस्तेमाल असरकारी है।
- लिवर रोगों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से एक भूमि आमलकी भी है।
- इसके अलावा डायबिटीज, एडिमा, पीलिया, कोलाइटिस (आंतों में सूजन), गोनोरिया (यौन क्रियाकलाप के दौरान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाले सबसे आम रोगों में से एक है) और पेचिश को नियंत्रित करने में भी भूमि आमलकी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- बाहरी तौर पर इस जड़ी बूटी के इस्तेमाल से जलन, घाव, सूजन, खुजली और अन्य त्वचा रोगों के इलाज में मदद मिलती है।
- इसका इस्तेमाल अर्क, रस, पाउडर, पुल्टिस या गोली के रूप में कर सकते हैं।
- हरिद्रा
- हरिद्रा परिसंचरण, पाचन, श्वसन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और सूजन-रोधी गुण होते हैं।
- ये खून बनाने और उसे साफ करने में मदद करती है। नसों में दर्द से राहत पाने में हरिद्रा उपयोगी है।
- इसका इस्तेमाल अर्क, काढ़े, दूध के काढ़े, पाउडर और पेस्ट के तौर पर किया जा सकता है।
- बला
- बला परिसंचरण, तंत्रिका, प्रजनन, श्वसन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें नसों को आराम देने, दर्द निवारक, ऊर्जादायक, उत्तेजक और मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं।
- शरीर को ताकत एवं मजबूती देने के लिए इस्तेमाल होने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में बला का नाम भी शामिल है।
- बला ऊतकों को ठीक और लंबे समय से हो रही जलन का इलाज करती है। विभिन्न वात विकारों को नियंत्रित करने और सुन्नपन, नसों में दर्द एवं मांसपेशियों में ऐंठन का इलाज करने में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- ये नसों में दर्द के सामान्य कारणों जैसे कि साइटिका, डायबिटिक न्यूरोपैथी और आर्थराइटिस के इलाज में भी असरकारी है।
- इसका इस्तेमाल काढ़े, पाउडर या औषधीय तेल के रूप में कर सकते हैं।
नसों में दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- वसंतकुसुमाकर
- इस औषधि को स्वर्ण (सोना), रौप्य (चांदी), वंग (टिन), नागा (लेड) और अभ्रक की भस्म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) को वासा (अडूसा), चंदन और हरिद्रा (हल्दी) जैसी जड़ी बूटियों में मिलाकर तैयार किया गया है।
- ये डायबिटीज, टीबी और मूत्र संबंधी विकारों के इलाज में उपयोगी है।
- वसंतकुसुमाकर तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करती है और वात के असंतुलन के कारण पैदा हुए नसों में दर्द को नियंत्रित करने में मददगार है।
- ये मिश्रण जलन और कमजोरी को कम करता है और इसी वजह से इसे नसों में दर्द की प्रभावशाली थेरेपी कहा गया है।
- शिरः शूलादिवज्र रस
- ये रसायन (ऊर्जादायक) औषधि है जिसे शुद्ध पारद (पारा), गंधक, शुद्ध गुग्गुल, लौह (आयरन) भस्म, ताम्र (तांबा) की भस्म, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), गोक्षुरा और दशमूल से तैयार की गई है।
- इस मिश्रण में गुग्गुल भी मौजूद है जिसमें वात को साफ करने के गुण होते हैं और ये सभी प्रकार के दर्द को नियंत्रित करने में उपयोगी है। जिसमें नसों में दर्द भी शामिल है, खासतौर पर ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया के कारण होने वाला नसों में दर्द।
- महावातविध्वंसन रस
- बढ़े हुए वात को ठीक करने की बेहतरीन औषधियों में महावातविध्वंसन रस का नाम भी शामिल है। ये तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकारों और दर्दभरी स्थितियों के इलाज में उपयोगी है।
- महावातविध्वंसन रस वात की नाडियों और वात प्रधान हिस्सों पर असर करती है। ये वात को संतुलित करती है जिससे वात के असंतुलन के कारण पैदा हुए लक्षणों में कमी आती है।
व्यक्ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
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आयुर्वेद के अनुसार नसों में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar nerve pain me kya kare kya na kare
क्या करें
- आरामदायक, नरम और स्पॉन्जी मैट्रेस पर सोएं। कुर्सी पर मुलायम कुशन लगाकर बैठें।
- अपने दैनिक आहार में मेथी, हींग, बैंगन, सहजन, इमली, नारियल पानी, नींबू, लहसुन, आम, अंगूर, यूश (कई प्रकार की दालों में उबाला गया पानी), मीट का रस, दूध, चावल, गेहूं, काले चने, घी, सैंधव (नमकीन मक्खन) और अनार शामिल करें।
- एक्सरसाइज और बैठते समय पोस्चर का ध्यान रखें।
- योग करें और रोज गर्म पानी से नहाएं।
क्या न करें
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि भूख, प्यास, मल त्याग और पेशाब को रोके नहीं। (और पढ़ें - पेशाब रोकने के नुकसान)
- वात बढ़ाने वाली चीजें जैसे कि बिस्किट, बासी भोजन, ठंडा खाना, दालें, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक एवं मटर न खाएं।
- ज्यादा ठंडी जगहों पर जाने से बचें।
- बहुत ज्यादा शारीरिक गतिविधियां न करें।
- दुख और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं से दूर रहें। (और पढ़ें -गुस्सा कैसे कम करें)
नसों में दर्द में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Nerve pain ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
डायबिटिक न्यूरोपैथी के लक्षणों से पीडित 30 प्रतिभागियों पर एक चिकित्सकीय अध्ययन किया गया था जिसमें नसों में दर्द को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक उपचार के प्रभाव की जांच की गई। इन प्रतिभागियों को अतिबला की जड़ के काढ़े के साथ भूमिआमलकी चूर्ण दिया गया। 30 दिन के उपचार के बाद आयुर्वेदिक औषधियों को डायबिटिक न्यूरोपैथी के लक्षणों (जिसमें दर्द भी शामिल था) के इलाज में असरकारी पाया गया।
अन्य चिकित्सकीय अध्ययन में साइटिका से ग्रस्त लोगों पर तीन आयुर्वेदिक औषधियों के प्रभाव की जांच की गई। प्रतिभागियों को तीन समूह में बांटा गया। पहले समूह को परिजात पत्र घन का हर्बल मिश्रण दिया गया और दूसरे समूह को दशमूल तेल से कटि बस्ती चिकित्सा दी गई जबकि तीसरे समूह को ये दोनों चीजें दी गई। तीनों समूह के प्रतिभागियों को लक्षणों से राहत मिली लेकिन तीसरे समूह के लोगों में बाकी दो समूह की तुलना में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया।
(और पढ़ें - नसों में दर्द के घरेलू उपाय)
नसों में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Naso me dard ki ayurvedic dawa ke side effects
वैसे तो आयुर्वेदिक चिकित्साएं सुरक्षित और असरकारी होती हैं लेकिन व्यक्ति की चिकित्सकीय स्थिति के आधार पर हानिकारक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। उपरोक्त चिकित्साओं को लेकर निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- गुदा एवं मलाशय में चोट लगने, दस्त, शरीर के निचले हिस्सों से ब्लीडिंग होने, मलाशय के बढ़ने और बस्ती कर्म के बाद विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है।
- आंतों में रुकावट, गुदा में सूजन और एनीमिया की स्थिति में बस्ती कर्म से बचना चाहिए।
- ब्लीडिंग विकारों, एनीमिया और बवासीर से ग्रस्त व्यक्ति को रक्तमोक्षण की सलाह नहीं दी जाती है।
- गंभीर पीलिया और हेपेटाइटिस (लिवर में सूजन) में हरिद्रा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- छाती में कफ जमने पर बला का प्रयोग हानिकारक साबित हो सकता है।
(और पढ़ें - नसों में सूजन का इलाज)
नसों में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Naso ke dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
नसों के असक्रिय या क्षतिग्रस्त होने पर न्यूरोपैथिक पेन हो सकता है। ये एक सामान्य स्थिति है जो दुनियाभर में कई लोगों को प्रभावित करती है। हालांकि, पारंपरिक औषधियों से दर्द से तुरंत आराम तो मिल जाता है लेकिन दवा का असर खत्म होने पर दर्द फिर से शुरु हो जाता है और इनके हल्के साइड इफेक्ट भी होते हैं।
अगर नसों में दर्द को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक उपचार, जड़ी बूटियों और औषधियों का ठीक तरह से इस्तेमाल किया जाए तो ये असरकारी और सुरक्षित होती हैं। ये आयुर्वेदिक तरीके न सिर्फ अंतर्निहित स्थिति (दर्द होने के असली कारण) का इलाज करते हैं बल्कि नसों में दर्द को दोबारा होने से भी रोकते हैं।
(और पढ़ें - नसों की कमजोरी के कारण)
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