आयुर्वेद में बुखार को ज्वर एवं अनेक रोगों का लक्षण कहा जाता है। एलोपैथी के अनुसार शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से बढ़ने पर बुखार घेर लेता है। बुखार होने पर शरीर का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है एवं बुखार के कारण कई तरह के रोग हो सकते हैं। बुखार के अन्य लक्षणों में खांसी, जुकाम, बदन दर्द, भूख में कमी और कब्ज शामिल है।
(और पढ़ें - भूख बढ़ाने का तरीका)
आयुर्वेद के अनुसार बुखार को नियंत्रित करने के लिए वमन कर्म (औषधियों से उल्टी करवाने की विधि), विरेचन कर्म (दस्त की विधि), बस्ती कर्म (एनिमा कर्म) और नास्य कर्म (नाक से औषधि डालने की विधि) का इस्तेमाल किया जा सकता है।
(और पढ़ें - एनिमा क्या होता है)
बुखार के इलाज में गुडुची (गिलोय), आमलकी (आंवला), वासा (अडूसा), अदरक, भूमि आमलकी, पिप्पली और मुस्ता (नागरमोथा) का प्रयोग किया जाता है। बुखार के लिए चिकित्सक द्वारा संजीवनी वटी, मृत्युंजय रस, त्रिभुवन कीर्ति रस और सितोपलादि चूर्ण की सलाह दी जाती है।
(और पढ़ें - कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज)
- बुखार के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Fever ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- बुखार की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Bukhar ki ayurvedic dawa ke side effects
- बुखार की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Bukhar ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
- बुखार की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Fever ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार बुखार होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Bukhar me kya kare kya na kare
- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से बुखार - Ayurveda ke anusar bukhar kya hota hai
- बुखार का आयुर्वेदिक इलाज - Bukhar ka ayurvedic upchar
बुखार के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Fever ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
101 डिग्री फारेनहाइट बुखार से ग्रस्त 20 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों पर चिकित्सकीय अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में आहार और जीवनशैली में अनुचित बदलाव के साथ संजीवनी वटी और किरतआदिसप्त कषाय चूर्ण के बुखार पर सकारात्मक प्रभाव पाए गए।
(और पढ़ें - पौष्टिक आहार के गुण)
इस अध्ययन में इलाज की अवधि 21 दिन तक रखी गई थी। इसमें बुखार, गर्दन पर लाल चकत्ते, सिरदर्द, पसीना आना, पेट दर्द, कब्ज और दस्त जैसे विभिन्न मापदंडों को देखा गया। उपचार के खत्म होने तक बुखार समेत सभी लक्षणों में सुधार पाया गया। अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार संजीवनी वटी और किरतआदिसप्त कषाय चूर्ण टाइफाइड बुखार के इलाज में उपयोगी है।
(और पढ़ें - चकत्ते का इलाज)
बुखार की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Bukhar ki ayurvedic dawa ke side effects
प्राचीन समय से ही उपरोक्त औषधियां, जड़ी बूटियां और इलाज का इस्तेमाल होता आ रहा है एवं विभिन्न दोषों में असंतुलन होने के कारण हुए बुखार पर इन्हें असरकारी भी पाया गया है। हालांकि, व्यक्ति की प्रकृति एवं रोग की स्थिति को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेदिक उपचार या जड़ी बूटी के प्रयोग में सावधानी बरतनी जरूरी है।
उदाहरण के तौर पर, गर्भवती महिलाओं को वमन और नास्य कर्म, मलाशय में अल्सर एवं ब्लीडिंग में विरेचन और बस्ती कर्म नहीं करना चाहिए। पित्त प्रधान रोगों में वासा एवं पिप्पली का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
(और पढ़ें - तेज बुखार होने पर क्या करें)
बुखार की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Bukhar ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
बुखार - टाइफाइड और डेंगू जैसे अनेक रोगों का एक सामान्य लक्षण है। वैसे तो विभिन्न प्रकार के ज्वर के इलाज के लिए अनेक औषधियां उपलब्ध हैं लेकिन वैदिक काल से बुखार के इलाज के लिए आयुर्वेदिक उपचार का इस्तेमाल होता आ रहा है। आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा आयुर्वेदिक उपचार में एक जड़ी बूटी या अनेक जड़ी बूटियों के मिश्रण की सलाह दी जाती है जोकि 8 प्रकार के ज्वर को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
(और पढ़ें - बुखार में क्या खाएं)
बुखार को नियंत्रित करने में आयुर्वेदिक चिकित्सक की भूमिका भी बहुत जरूरी है क्योंकि उपचार की प्रक्रिया और जड़ी बूटी का उचित इस्तेमाल व्यक्ति की प्रकृति के आधार पर ही निर्धारित किया जाता है एवं यह निर्णय आयुर्वेदिक चिकित्सक ज्यादा बेहतर तरीके से ले सकते हैं।
(और पढ़ें - बुखार भगाने के घरेलू उपाय)
बुखार की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Fever ki ayurvedic dawa aur aushadhi
बुखार के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- गुडूची
- गुडूची प्रमुख तौर पर परिसंचरण और पाचन तंत्र से संबंधित रोगों का इलाज और उन्हें रोकने का काम करती है।
- ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और तीनों दोषों को शांत करती है।
- गुडूची पित्त रोगों, बुखार, कफ के कारण हुए पीलिया और जीर्ण मलेरिया के बुखार में उपयोगी है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ)
- ये पाचन को बेहतर एवं खून को साफ करती है। (और पढ़ें - खून साफ करने के घरेलू उपाय)
- पिप्पली
- ये पाचन, श्वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। पिप्पली बुखार के सामान्य लक्षणों जैसे कि दर्द, जुकाम और खांसी से राहत दिलाती है। इसमें वायुनाशी और कृमिनाशक गुण मौजूद होते हैं। (और पढ़ें - खांसी में क्या खाएं)
- पाचन अग्नि (इसके कम होने के कारण बुखार होता है) में सुधार करने में पिप्पली असरकारी होती है। ये बुखार के सामान्य लक्षणों जैसे कि दर्द, जुकाम और खांसी से राहत दिलाती है। (और पढ़ें - जुकाम होने पर क्या करें)
- पिप्पली शरीर से अमा को भी बाहर निकालती है। पिप्पली से पेट में ट्यूमर, अस्थमा, गठिया, रुमेटिक दर्द, कफ विकारों और साइटिका का इलाज भी किया जा सकता है।
- पिप्पली के कारण पित्त दोष बढ़ सकता है इसलिए पित्त प्रधान वाले व्यक्ति को पिप्प्ली का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
- वासा
- ये श्वसन, परिसंचरण, तंत्रिका और पाचन प्रणाली पर कार्य करती है। ये मूत्रवर्द्धक, मांसपेशियों में ऐंठन दूर करने और कफ निस्सारक (बलगम खत्म करने वाले) कार्य करती है।
- मूत्रवर्द्धक कार्य की वजह से व्यक्ति को बार-बार पेशाब आता है जिससे शरीर से अमा बाहर निकल जाता है और बुखार कम होता है।
- खांसी, ब्रोंकाइल अस्थमा, कफ विकारों, डायबिटीज और मसूड़ों से खून आने की समस्या में भी वासा उपयोगी है।
- आमलकी
- आमलकी परिसंचरण, पाचन और उत्सर्जन प्रणाली पर कार्य करता है। इसमें पोषण देने वाले शक्तिवर्द्धक, ऊर्जादायक और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं जो कि त्रिदोष को शांत करने में सक्षम है।
- ये सभी प्रकार के पित्त रोगों, बुखार, गठिया, कमजोरी, आंखों या फेफड़ों में सूजन, लिवर और पाचन मार्ग से संबंधित विकारों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। (और पढ़ें - फेफड़ों को स्वस्थ रखने के तरीके)
- आमलकी की वजह से दस्त हो सकते हैं और गर्भावस्था के दौरान इसका इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए। (और पढ़ें - गर्भावस्था के महीने)
- अदरक
- अदरक शरीर के पाचन और श्वसन तंत्र पर कार्य करती है। ये दर्द से राहत दिलाती है और वायुनाशी (पेट फूलने की समस्या को कम करना), पाचक और कफ निस्सारक कार्य करती है। इस प्रकार अदरक बुखार से संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
- वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण हुए रोगों को नियंत्रित करने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। शुंथि (सूखी अदरक) अग्नि को बढ़ाती है और कफ को कम करती है।
- इससे शरीर में पित्त बढ़ता है इसलिए ब्लीडिंग से संबंधित रोगों और अल्सर में इसका इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
- मुस्ता
- मुस्ता पाचन और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है। ये वायुनाशी, उत्तेजक, मूत्रवर्द्धक, भूख बढ़ाने, फंगसरोधी और कृमिनाशक कार्य करती है।
- मुस्ता के मूत्रवर्द्धक गुण खासतौर पर बुखार को नियंत्रित करने में मदद करते हैं क्योंकि इससे बार-बार पेशाब आता है जिससे शरीर से अमा निकल जाता है।
- भूमि आमलकी
- पाचन, प्रजनन और मूत्र प्रणाली से संबंधित विकारों को नियंत्रित करने में भूमि आमलकी उपयोगी है।
- भूमि आमलकी से पीलिया, बाहरी सूजन और मसूड़ों से खून आने का इलाज किया जा सकता है। ये सभी समस्याएं बुखार से जुड़ी हुई हैं जिन्हें दूर कर भूमि आमलकी बुखार को नियंत्रित करने में मदद करती है।
बुखार के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- मृत्युंजय रस
- इसमें एक निश्चित मात्रा में शुद्ध हिंगुल चूर्ण, शुद्ध वत्सनाभ चूर्ण, मारीच (काली मिर्च) चूर्ण, पिप्पली चूर्ण, शुद्ध टंकण और शुद्ध गंधक मौजूद है।
- ये बुखार पैदा करने वाले कई बैक्टीरियल संक्रमण में उपयोगी है।
- संजीवनी वटी
- त्रिभुवनकीर्ति रस
- ये एक हर्बो-मिनरल (जड़ी बूटियों और खनिज पदार्थों का मिश्रण) औषधि है जिसमें शुंथि, मारीच, पिप्पली, तुलसी, धतूरा और अदरक जैसी कई जड़ी बूटियां मौजूद हैं।
- बुखार का कारण बने प्रधान दोष के आधार पर इसका इस्तेमाल विभिन्न भस्मों (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) जैसे कि गोदंती भस्म, श्रृंग भस्म और अभ्रक भस्क के साथ किया जाता है।
- ये शरीर पर पसीना लाकर और दर्द से राहत दिलाकर बुखार का इलाज करती है। इसके अलावा त्रिभुवनकीर्ति रस से माइग्रेन, इंफ्लुएंजा, लेरिन्जाइटिस (स्वर तंत्र में सूजन), फेरिंजाइटिस (गले में सूजन), निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, खसरा और टॉन्सिलाइटिस को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।
- सितोपलादि चूर्ण
- सितोपलादि चूर्ण में निश्चित मात्रा में मिश्री, वंशलोचन, छोटी पिप्पली, छोटी इलायची और दालचीनी मौजूद है।
- ये बुखार, फ्लू, माइग्रेन और श्वसन विकारों के इलाज में असरकारी है। औषधि से फ्लू के लक्षणों से शुरुआती तीन से चार दिनों में ही राहत मिल जाती है जबकि फ्लू को पूरी तरह से ठीक होने में आठ सप्ताह का समय लगता है। (और पढ़ें - फ्लू के घरेलू उपाय)
- जुकाम में सिर में कफ जमने के कारण हुए सिरदर्द के इलाज में भी ये मदद करती है। (और पढ़ें - सिर दर्द होने पर क्या करना चाहिए)
व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार बुखार होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Bukhar me kya kare kya na kare
क्या करें
- शाली चावल, जौ और दलिया खाएं।
- फल और सब्जियां जैसे कि परवल, करेला, शिग्रु (सहजन), गुडुची, जीवंती, अंगूर, कपित्थ (बेल) और अनार को अपने आहार में शामिल करें।
- हल्का भोजन करें। (और पढ़ें - संतुलित आहार चार्ट)
- मालिश और आराम से व्यक्ति की हालत में सुधार लाया जा सकता है।
क्या न करें
- छोले, तिल और जंक फूड न खाएं। (और पढ़ें - जंक फूड के दुष्परिणाम)
- दूषित पानी न पीएं। (और पढ़ें - पानी साफ करने का तरीका)
- भारी भोजन न करें या पेट में एसिडिटी और जलन पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ खाने से बचें।
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि मल निष्कासन और पेशाब आदि न रोकें।
- दिन में नहाने या सोने से बचें। (और पढ़ें - नहाने का सही तरीका)
- खाने के बीच में उचित अंतराल रखें और ओवरईटिंग न करें।
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से बुखार - Ayurveda ke anusar bukhar kya hota hai
आयुर्वेद में बुखार के अनेक कारणों का उल्लेख किया गया है। हालांकि ज्वर को 8 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। इनमें से बुखार के 7 प्रकार दोष के आधार पर हैं जैसे कि वात, पित्त, कफ, कफ, वात-पित्त, वात-कफ, पित्त-कफ और सन्निपतक (वात-पित्त-कफ)।
(और पढ़ें - वात पित्त कफ किसे कहते हैं)
बुखार के बाहरी कारणों में दुख, गुस्सा, आवेग, कीटाणु, चोट और अलौकिक शक्तियों (आत्मा) का प्रभाव शामिल है। किसी भी दोष के खराब होने या बाहरी कारणों की वजह से बुखार हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार बुखार की शुरुआत पेट से होती है और ज्वर प्रमुख तौर पर पेट की अग्नि (पाचन अग्नि) को प्रभावित करता है जिसके कारण अमा (विषाक्त पदार्थ) बढ़ता है एवं दोष खराब होता है। परिसंचरण नाडियां अमा को रस धातु में भेज देती हैं।
(और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय)
बुखार के दौरान थोड़ा या बिलकुल पसीना नहीं आता है, इसलिए पसीना उत्पन्न करने से बुखार का इलाज करने में मदद मिलती है। जिस दोष के कारण बुखार हुआ है उसे हल्के भोजन या व्रत और पाचक उत्तेजक जैसी प्रक्रियाओं से संतुलित किया जाता है।
(और पढ़ें - स्वस्थ जीवन के लिए लाभदायक भोजन के बारे में जानें)
बुखार का आयुर्वेदिक इलाज - Bukhar ka ayurvedic upchar
- लंघन
- ज्वर का प्रमुख इलाज लंघन (व्रत) है। व्रत रखने से शरीर में मौजूद अमा और खराब दोषों को पचने में मदद मिलती है। इस प्रकार ज्यादातर ज्वरों के मूल कारण का इलाज किया जाता है। इस चिकित्सा से शरीर में हल्कापन लाया जाता है।
- व्रत दो प्रकार के होते हैं – पहला, पूरी तरह से खाना बंद कर दिया जाता है और दूसरा, दीपन (भूख बढ़ाने वाली) औषधियों के साथ कम या हल्का भोजन करना। व्यक्ति की प्रकृति के आधार पर व्रत का चयन किया जाता है। व्यक्ति को तब तक व्रत पर रखा जाता है जब तक कि उसे भूख का अहसास न हो। इसके बाद आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थ, हल्का भोजन और अदरक या पिप्पली के साथ उबला हुआ पानी दिया जाता है।
- वमन कर्म
- इसमें पेट से अमा और नाडियों एवं छाती से बलगम को निकालने के लिए औषधियों से उल्टी करवाई जाती है।
- बुखार से पीडित व्यक्ति को हल्के वमन वाली जड़ी बूटियां दी जाती हैं। कफ दोष के खराब होने और व्रत द्वारा अमा के पचने पर ही वमन कर्म किया जाता है।
- गर्भवती महिलाओं, कमजोर व्यक्ति, बच्चों और वृद्धों को वमन की सलाह नहीं दी जाती है। हृदय रोग और हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त व्यक्ति को भी वमन चिकित्सा नहीं दी जाती है। (और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें)
- विरेचन कर्म
- ये पंचकर्म थेरेपी में से एक है जिसमें शरीर से मल को साफ करने के लिए रेचक (जुलाब) दिए जाते हैं।
- रेचक जड़ी बूटियां और औषधियां पित्ताशय, लिवर एवं छोटी आंत से अतिरिक्त पित्त को साफ करती हैं। कफ विकार वाले व्यक्ति को इस उपचार से सबसे ज्यादा फायदा होता है क्योंकि इनमें वसा, बलगम और पित्तरस ज्यादा रहता है और विरेचन कर्म से इन्हे शरीर से बाहर निकालना आसान होता है।
- जिन लोगों में अमा पूरी तरह से पच चुका हो या जीर्ण (पुराने) बुखार की स्थिति में खराब हुए दोष को हटाने के लिए हल्के रेचक दिए जा सकते हैं।
- बस्ती कर्म
- ये पश्चिमी चिकित्सा में दी जाने वाली एनिमा थेरेपी की तरह ही है। बस्ती बड़ी आंत और मलाशय को पूरी तरह से साफ करती है।
- निरुह और अनुवासन प्रकार की बस्ती जीर्ण बुखार की स्थिति में की जाती है। लंघन के बाद अमा के पूरी तरह से पच जाने के बाद भी निरुह और अनुवासन बस्ती की जाती है।
- गुदा से ब्लीडिंग, दस्त, पॉलिप्स और कोलोन कैंसर के मरीज़ों को भी बस्ती कर्म नहीं लेना चाहिए। (और पढ़ें - ब्लीडिंग रोकने का तरीका)
शहर के आयुर्वेदिक डॉक्टर खोजें
बुखार की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

Dr. Megha Sugandh
आयुर्वेद
6 वर्षों का अनुभव

Dr. Nadeem
आयुर्वेद
3 वर्षों का अनुभव

Dr.Ashok Pipaliya
आयुर्वेद
12 वर्षों का अनुभव

Dr. Harshaprabha Katole
आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव
संदर्भ
- Ministry of Ayush. [Internet]. Government of India. Ayurvedic Standard Treatment Guidelines.
- Swami Sadashiva Tirtha. The ayurveda encyclopedia . Sat Yuga Press, 2007. 657 pages.
- Vaidya Bhagwan Dash and Acarya Manfred Junius. Handbook of ayurveda. pp 195-196 , 1987, Concept Publishing Company, New Delhi.
- Gandhidas Sonajirao Lavekar. Classical ayurvedic prescriptions for common diseases. Ministry of Health, Govt. of India.
- L.D Kapoor. Handbook of Ayurvedic Medicinal Plants. Herbal Reference Library. 1st Edition. 424 pages.
- Agrawal Sachin. et al. Anti microbial study of Mrityunjaya Rasa. International Ayurvedic Medical Journal. ISSN:2320 5091.
- Saurabh Parauha. et al. Comparitive Clinical Study in the Management of Typhoid Fever through Shramnaushadi. International Ayurvedic Medical Journal. (ISSN: 2320 5091) (April, 2017) 5(4).