आज कल की भाग दौड़ और फास्ट फूड वाली लाइफ स्टाइल के कारण बहुत सी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। आज कल की जो कॉमन समस्या है फैटी लिवर । फैटी लिवर दुनिया भर में लिवर की बीमारी का एक प्रमुख कारण है। करीब 1,000 लोगों पर 47 लोगों को फैटी लिवर के मामले हैं और यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा होते हैं। दुनिया भर के करीब 32% लोगों को फैटी लिवर की परेशानी है , जिस में से 26% महिलायें और 40% पुरुष हैं। फैटी लिवर समय के साथ बढ़ रहा है, 2005 में 26% से बढ़कर 2016 में ये 38% हो गया है। 2030 तक फैटी लिवर दुनिया के कई क्षेत्रों में काफी बढ़ सकता है। यह बीमारी तब होती है जब लिवर में जरूरत से ज्यादा वसा यानि Fat जमा हो जाता है , और आज कल हम सब का भोजन जैसा हो गया है ये बीमारी सभी को हो रही है , यदि समय पर ध्यान न दिया जाए, तो यह गंभीर लिवर रोगों का कारण बन सकता है। आज इस आर्टिकल में हम बात करेंगे कि फैटी लिवर में कौन सी दाल खानी चाहिए?
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- फैटी लिवर क्या है?
- फैटी लिवर के कारण
- फैटी लिवर के लक्षण
- फैटी लिवर से बचाव के उपाय
- फैटी लिवर में कौन सी दाल खानी चाहिए ?
- फैटी लिवर में किन दालों से बचना चाहिए?
- सारांश
फैटी लिवर क्या है?
फैटी लिवर एक ऐसी स्थिति है जिसमें लिवर की सेल्स में चर्बी या वसा या फैट जमा हो जाता है। नॉर्मली लिवर में कुछ मात्रा में फैट होता ही है , लेकिन जब यह मात्रा 5-10% से अधिक हो जाती है, तो इसे फैटी लिवर कहा जाता है। फैटी लिवर मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:
- नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज – यह उन लोगों में पाया जाता है जो शराब नहीं पीते।
- अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज – यह शराब के अधिक सेवन से होता है।
यदि इस समस्या को समय पर नियंत्रित न किया जाए, तो ये सिरोसिस (Cirrhosis) जैसी गंभीर बीमारियों में बदल सकता है।
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फैटी लिवर के कारण
फैटी लिवर के बहुत से कारण हो सकते हैं-
- हेल्थी फूड न खाना – जंक फूड, तला-भुना और ज्यादा फैट वाला खाना खाने से लिवर में चर्बी जमा होने लगती है।
- मोटापा – मोटे लोगों में लिवर में फैट का लेवल बढ़ जाता है, जिससे फैटी लिवर का खतरा अधिक होता है।
- शराब का सेवन करना – बहुत ज्यादा शराब पीने से लिवर की काम करने की क्षमता खतम होने लगती है जिस से लिवर में फैट जमा होने लगता है।
- बॉडी को एक्टिव न रखना – नियमित व्यायाम न करने से शरीर में फैट जमा होने लगता है, जिससे लिवर भी प्रभावित होता है।
- Diabetes – टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में फैटी लिवर की प्रॉब्लम ज्यादा देखी जाती है।
- कोलेस्ट्रॉल और हाई ब्लड प्रेशर – ज्यादा कोलेस्ट्रॉल और हाई बीपी होने पर लिवर पर ज्यादा दबाव पड़ता है। जिस से फैटी लिवर की समस्या होती है।
- Genetics – यदि परिवार में किसी को फैटी लिवर है, तो अगली पीढ़ी में इसके होने की संभावना अधिक होती है।
- बहुत ज्यादा दवाइयाँ खाना – कुछ दवाइयाँ जैसे स्टेरॉयड, पेनकिलर और एंटीबायोटिक्स लिवर को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
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फैटी लिवर के लक्षण
शुरुआत में फैटी लिवर के शुरुआती लक्षण दिखाई नहीं देते , लेकिन जैसे-जैसे समस्या बढ़ती है, निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द या भारीपन
- भूख कम लगना
- लगातार थकान और कमजोरी
- जी मिचलाना और उल्टी आना
- त्वचा और आँखों का पीला पड़ना
- वजन का अचानक बढ़ना या घटना
- पेट में सूजन
- मानसिक भ्रम या एकाग्रता में कमी
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फैटी लिवर से बचाव के उपाय
फैटी लिवर को आप लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव कर के रोक सकते हैं । जैसे -
- अधिक फाइबर और प्रोटीन युक्त भोजन करें।
- हरी सब्जियाँ, फल, दालें और साबुत अनाज खाएँ
- तला-भुना और प्रोसेस्ड फूड न खाएँ
- चीनी और नमक न खाएँ
- रोजाना कम से कम 30-40 मिनट वॉक , योग , कार्डियो एक्सरसाइज, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग और एरोबिक्स करें ।
- शराब और धूम्रपान पूरी तरह छोड़ दें।
- नियमित रूप से ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जाँच कराएँ।
- कम से कम 7-8 घंटे की गहरी नींद लें।
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फैटी लिवर में कौन सी दाल खानी चाहिए ?
दालों में फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है जो लोगों के दैनिक भोजन के लिए बहुत जरूरी है । दालों में मौजूद फाइबर में घुलनशील फाइबर जो शरीर के वजन, ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है और अघुलनशील फाइबर पाचन में मदद करता है।
अक्सर लोग बोलते हैं कि दालें खाने से उनका पेट फूल जाता है , लेकिन ये पूरी तरह सही नहीं है . अगर आपको बीन्स और दालें खाने की आदत नहीं है, तो कुछ हफ़्तों में धीरे-धीरे इन्हें अपने भोजन में शामिल करें ताकि आपके पेट के बैक्टीरिया को इन दालों के साथ एडजस्ट होने का समय मिल सके। कुछ दालों में कुछ शर्करा होती हैं जो आंतों के बैक्टीरिया से मिलने पर गैस बनाती हैं। दालों में फैट काम होता है तो यह प्रोटीन का एक बढ़िया स्रोत है, खासकर उन लोगों के लिए जो बहुत ज़्यादा मांस, मछली या डेयरी नहीं खाते हैं। वे अपने भोजन में दालों को शामिल कर के विटामिन , आयरन, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे खनिजों की कमी को पूरा कर सकते हैं । इसलिए आइए देखते हैं कि किस दाल के क्या फायदे हैं और कौन सी दाल आपको खानी चाहिए और कौन सी नहीं?
- मूंग दाल (Moong Dal) - मूंग दाल फैटी लिवर के लिए सबसे अच्छी दालों में से एक मानी जाती है। यह हल्की, पचाने में आसान और पोषक तत्वों से भरी होती है । मूंग दाल में फैट कम होता है होती है, जिससे लिवर पर ज्यादा भारीपन महसूस नहीं होता , इसके डिटॉक्सिफाइंग गुण लिवर को साफ करने में मदद करते हैं। मूंग दाल में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स लिवर की सूजन को कम करते हैं और फाइबर पाचन में सुधार करता है।
- मसूर दाल (Masoor Dal) - मसूर दाल में प्रोटीन अधिक मात्रा में होता है, जो लिवर को ठीक करने में मदद करता है। ये कोलेस्ट्रॉल को कम कर के लिवर में फैट नहीं जमा होने देती और इसमें मौजूद आयरन और फोलेट लिवर की ताकत को बढ़ाते हैं।
- अरहर दाल (Toor Dal) - अरहर दाल प्रोटीन और जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर होती है। यह लिवर के लिए अच्छी तो मानी जाती है , लेकिन इसे ज्यादा मात्रा में नहीं खाना चाहिए। की लोगों को इस से अपच हो सकती है। ये कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली दाल है, जिससे ब्लड शुगर कंट्रोल रहता है और लिवर हेल्थी। पोटैशियम की अच्छी मात्रा होने के कारण ये दाल लिवर को डिटॉक्स करने में मदद करती है ।
- उड़द दाल - छिलके वाली उड़द दाल लिवर के लिए फायदेमंद होती है, लेकिन इसे सीमित मात्रा में खाना चाहिए और बिना छिलके वाली उड़द दाल भारी होती है तो इसे आप न ही खाएँ तो ज्यादा अच्छा है। इसमें मौजूद डाइटरी फाइबर लिवर को हेल्थी बनाता है , फोलिक एसिड और आयरन लिवर की क्षमता को बढ़ते हैं और यह दाल शरीर से टॉक्सिन्स से बाहर निकालने में हेल्पफुल है।
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फैटी लिवर में किन दालों से बचना चाहिए?
- चना दाल न खाएँ क्यूं की ये भारी होती है और इसे पचाने में अधिक समय लगता है।
- राजमा और छोले में अधिक फाइबर और एंटी-न्यूट्रिएंट्स होते हैं, जो फैटी लिवर के लिए सही नहीं हैं। फैटी लिवर के लिए दाल पकाते समय कम तेल और घी का उपयोग करें। ज्यादा मिर्च-मसाले न डालें, हल्दी और अदरक का उपयोग करें।
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सारांश
फैटी लिवर की समस्या में सही आहार लेना बहुत जरूरी होता है। हल्की और आसानी से पचने वाली दालें जैसे मूंग, मसूर, अरहर और छिलके वाली उड़द दाल लिवर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होती हैं। सही प्रकार की दालों का चयन करके उन्हे खाने से लिवर की कार्यक्षमता को सुधार सकता है और फैटी लिवर की समस्या को कम कर सकता है।