भारत में रहने वाले लोग अन्य देशों के लोगों की अपेक्षा ज्यादा जल्दी डायबिटीज से ग्रस्त होते हैं। देश की सर्वोच्च मेडिकल रिसर्च एजेंसी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने अपने एक नए अध्ययन के हवाले से यह जानकारी दी है। इसके मुताबिक, भारत में 25 साल से कम उम्र के हर चार लोगों में से एक में डायबिटीज अलग-अलग लेवल के साथ मौजूद है। अध्ययन रिपोर्ट में आईसीएमआर ने कहा कि यह कंडीशन आमतौर पर 40 से 45 वर्ष के आयुवर्ग के लोगों में देखने को मिलती है, लेकिन भारतीयों में यह कम से कम एक दशक पहले देखने को मिलती है।

  1. दिल्ली बन रही डायबिटीज कैपिटल - स्टडी
  2. मोटापा है मुख्य कारण - स्टडी

अध्ययन में शामिल मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर ने भारत में डायबिटीज से जुड़े डेटा का विश्लेषण किया है। इसमें यह भी पता चला कि देश की राजधानी होने के अलावा दिल्ली तेजी से भारत की 'डायबिटीज कैपिटल' भी बनती जा रही है। समाचार एजेंसी आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक, अध्ययन में जून 2019 से लेकर अगस्त 2020 के बीच दिल्ली में किए गए डायबिटीज के एक लाख 37 हजार 280 सैंपलों की जांच की गई थी। इनमें से कोई 18 प्रतिशत मामले ऐसे थे, जिनमें मरीज डायबिटीज की ऐसी स्थिति से जूझ रहे थे, जिसका नियंत्रण बहुत मुश्किल था। हैरानी की बात यह है कि ऐसे डायबिटीज से सबसे ज्यादा पीड़ित लोगों की उम्र 20 से 30 वर्ष के बीच थी। अध्ययन के मुताबिक, इस आयुवर्ग के डायबिटीज मरीजों में से 25 प्रतिशत के डायबिटीज को नियंत्रण करना बहुत मुश्किल था। 30 से 40 वर्ष की उम्र वाले ऐसे मरीजों की दर 24 प्रतिशत थी, जबकि 40 से 50 वर्ष की उम्र के 23 प्रतिशत डायबिटीज पीड़ितों में इस मेडिकल कंडीशन का कंट्रोल करना मुश्किल पाया गया था।

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एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले नवंबर 2017 में अपनी एक अन्य रिपोर्ट में आईसीएमआर ने बताया था कि भारत में पिछले 25 सालों में डायबिटीज के मामले 64 प्रतिशत तक बढ़े हैं। केंद्र सरकार की शीर्ष मेडिकल रिसर्च एजेंसी ने दो अन्य संस्थानों इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल मेट्रिक्स एंड इवैलुएशन तथा पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर अध्ययन कर यह रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया गया था कि लोगों की फिजिकल एक्टिविटी में आई कमी और हाई-कैलोरी वाले फूड आइटम ज्यादा खाने की वजह से डायबिटीज और इससे जुड़े खतरों में बढ़ोतरी हुई है। इसी कारण, डायबिटीज को 'लाइफटाइम डिसीज' यानी जिंदगी भर चलने वाली बीमारी की श्रेणी में रखा जाता है, जो अब 20 से 30 वर्ष के युवाओं में भी व्यापक स्तर पर पाई जा रही है।

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इन आंकड़ों और मौजूदा स्थिति पर आईएएनएस से बातचीत में मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की मेडिकल मामलों की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डॉ. कीर्ति चड्ढा कहती हैं, 'आमतौर पर बुजुर्ग वयस्कों में टाइप 2 डायबिटीज की समस्या होती है। लेकिन अब नवयुवाओं और युवा वयस्कों में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं। ऐसा मोटापे, शारीरिक असक्रियता और खानपान की खराब आदतों के बढ़ने के कारण हो रहा है। युवाओं में अस्वस्थ भोजन और निष्क्रियता संबंधी व्यवहार के कारण उनमें डायबिटीज विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। दुनियाभर में हुए अध्ययन बताते हैं कि जीवनशैली में बदलाव, जैसे फिजिकल एक्टिविटी और हेल्दी डाइट से टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को टाला या रोका जा सकता है।'

अध्ययन के हवाले से शोधकर्ताओं ने बताया है कि युवाओं में बने-बनाए फूड आइटम खाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे खाद्य पदार्थ आमतौर पर सस्ते दाम में मिल जाते हैं। दैनिक कामकाज या नौकरी में व्यस्त लोग, विशेषकर युवा, इस तरह के खाने को प्रेफर करते हैं। दिन-ब-दिन ऐसे फूड आइटमों के विकल्प बढ़ते जा रहे हैं। डेटा के आधार पर शोधकर्ताओं ने बताया है कि 80 साल के आयुवर्ग में आने वाले लोगों में इस तरह के फूड आइटम खाने की दर काफी कम है। वहीं, 20 से 30 वर्ष की उम्र के लोगों में ऐसा खाना खाने की आदत ज्यादा पाई गई है।

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अध्ययन में किए गए सर्वे में पता चला है कि पुरुषों में डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है। सर्वेक्षण में डायबिटीज टेस्ट वाले सभी पुरुष प्रतिभागियों में 24 प्रतिशत ऐसे थे, जिनका डायबिटीज संतोषजनक रूप से नियंत्रित नहीं हुआ था और 20 प्रतिशत का डायबिटीज मुश्किल से कंट्रोल होने वाले था। वहीं, ऐसी कंडीशन वाली महिलाओं की दर 19 प्रतिशत थी।

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