पूरी दुनिया इस वक्त कोविड-19 के प्रकोपों से जूझ रही है। दुनियाभर में अब कुल संक्रमितों का आंकड़ा 50 लाख से अधिक का हो गया है, वहीं सवा 3 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गवां चुके हैं। भारत में संक्रमितों का आंकड़ा अब एक लाख को पार कर गया है। इस महामारी का अब तक कोई इलाज उपलब्ध न हो पाना दुनियाभर के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। इतना ही नहीं विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन बनने में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है।

तो क्या दुनियाभर के वैज्ञानिक हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं? नहीं। इस बीमारी के इलाज के लिए लगातार शोध किए जा रहे हैं, कई तरह के उपायों का परीक्षण भी किया जा रहा है। इसी क्रम में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कुछ हद तक सफलता प्राप्त की है। 'अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस' में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों का दावा है कि 'ट्विन एंटीबॉडी' नोबल कोरोना वायरस को मारने की क्षमता रखते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये दोनों एंटीबॉडी उन रोगियों के शरीर से प्राप्त की जाएंगी जो कोविड-19 संक्रमण से ठीक हो चुके हैं।

आइए जानते हैं कि यह ट्विन एंटीबॉडी क्या है और कोविड-19 के उपचार में यह किस प्रकार से काम में लाया जा सकता है?

क्या ​कहता है ट्विन एंडीबॉडी पर किया गया अध्ययन?

वैज्ञानिकों को कहना है कि कोविड-19 वायरस, फेफड़ों, हृदय और आंत में पाए जाने वाले एसीई-2 नामक एंजाइम से जुड़ता है। इसलिए कोविड-19 उन लोगों को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है, जिनके शरीर में एसीई-2 की मात्रा अधिक होती है। शोधकर्ता बताते हैं कि वायरस के आवरण पर स्पाइक (एस) नामक ग्लाइकोप्रोटीन पाया जाता है, जो वायरस को शरीर में आसानी से प्रवेश करने में मदद करता है। एस ग्लाइकोप्रोटीन में दो भाग होते हैं एस1 और एस2। इसमें एस1 वायरस के बाइंडिंग का काम करता है।

इस अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के एस1 वाले हिस्से को लक्षित किया, जिससे वायरस के प्रभाव को बेअसर किया जा सके। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से पूरी तरह से ठीक हो चुके व्यक्ति के खून का सैंपल लिया। इसके बाद सैंपल से मेमोरी बी-कोशिकाओं को अलग कर दिया गया। मेमोरी बी वे कोशिकाएं होती हैं जो पहली बार शरीर में होने वाले संक्रमण को याद रखती हैं और इसी के आधार पर दोबारा संक्रमण की स्थिति में वायरस से मुकाबला करते हुए शरीर को सुरक्षित रखती हैं। इसके बाद इन्हीं बी-कोशिकाओं का उपयोग करते हुए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी तैयार किया गया। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी संक्रमण पैदा करने वाले रोगाणुओं से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उत्पादित एंटीबॉडी का कृत्रिम रूप है। इसे प्रयोगशालाओं में तैयार किया जाता है।

अब वैज्ञानिकों ने पाया कि चार अलग-अलग एंटीबॉडी (बी5, बी 38, एच 2 और एच 4) कोविड-19 वायरस के बाध्यकारी स्थल एस1 के साथ जुड़ जाते हैं। इसके बाद एंटीबॉडी का यह बंधन वायरस को एसीई2 के साथ बाइंडिंग से रोके रखता है, जिसके परिणामस्वरूप वायरस का प्रभाव निष्क्रिय हो जाता है। शोध के दौरान यह भी पाया गया कि चारों एंटीबॉडी में से बी38 और एच4 उच्च वायरल लोड की स्थिति में भी वायरस को बेअसर करने की उत्कृष्ट क्षमता रखते हैं।

पशुओं पर किए गए परीक्षण का परिणाम

शरीर में बी38 और एच4 की सुरक्षा और दक्षता की पुष्टि करने के लिए, वैज्ञानिकों ने एसीई2 ट्रांसजेनिक चूहों पर इसका परीक्षण किया। ऐसे चूहों को परीक्षण के लिए प्रयोग में लाया गया, जिनमें आनुवंशिक रूप से एसीई-2 एंजाइम की मात्रा उच्च थी। परीक्षण के लिए इन चूहों में वायरस इंजेक्ट किया गया और इसके 12 घंटे बाद उन्हें बी38 या एच4 की 25 मिलीग्राम की एक खुराक दी गई थी। परिणामस्वरूप पाया गया कि जिन चूहों को बी38 की खुराक दी गई थी वे संक्रमण के तीन दिनों के भीतर ही ठीक हो गए।

निष्कर्ष :

वैज्ञानिकों का मानना है कि बी38 और एच4 एंटीबॉडी का ट्विन रूप कोविड-19 वायरस को बेअसर कर सकता है। ऐसा इसलिए है ​क्योंकि दोनों ही एंटीबॉडी वायरस के लिए बाइंडिंग साइट को बंद करने में सक्षम हैं। इसके विस्तृत परिणामों के लिए अभी और अध्ययन किए जाने बाकी हैं। फिलहाल शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रयोगशाला में मिली यह सफलता कोविड-19 संक्रमण के लिए इलाज और वैक्सीन में मददगार हो सकती है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: वैज्ञानिकों को दावा, उपचार में रामबाण साबित हो सकती है ट्विन एंटीबॉडी है

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