जानी-मानी मेडिकल पत्रिका दि लांसेट ने रूस द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन 'स्पूतनिक 5' को छोटे मानव परीक्षणों के परिणामों के आधार पर कोरोना वायरस के खिलाफ सक्षम और सुरक्षित बताया है। पत्रिका की मानें तो इन सीमित मानव परीक्षणों (76 प्रतिभागी) में वैक्सीन से प्रतिभागियों के शरीर में कोरोना वायरस को रोकने वाले एंटीबॉडी पैदा हुए हैं और ऐसा होते हुए उनमें कोई भी गंभीर दुष्प्रभाव नहीं दिखे हैं। पीटीआई के मुताबिक, लांसेट ने बताया है कि शुरुआती चरण में नॉन-रैंडमाइज्ड ट्रायलों के दौरान 76 लोगों पर स्पूतनिक 5 वैक्सीन को दो फॉर्मुलेशन के साथ आजमाया गया, जिन्हें 42 दिनों के ऑब्जर्वेशन के दौरान सुरक्षित पाया गया है। इन डोजों से प्रतिभागियों के शरीर में 21 दिनों के अंदर एंटीबॉडी रेस्पॉन्स पैदा होने का दावा किया गया है। इतना ही नहीं, शोधकर्ताओं ने वैक्सीन के प्रभाव में प्रतिभागियों में टी सेल रेस्पॉन्स देखे जाने का भी दावा किया है, जोकि कोरोना संक्रमण के खिलाफ दीर्घकालिक इम्यूनिटी होने के लिहाज से महत्वपूर्ण है।
हालांकि यहां स्पष्ट कर दें कि पत्रिका ने जिस संख्या में प्रतिभागियों को अध्ययन में शामिल किया, वह वैक्सीन को पूरी तरह सुरक्षित और सक्षम साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। मेडिकल जानकारों के मुताबिक, किसी बीमारी के खिलाफ तैयार की गई वैक्सीन को सही मायने में सक्षम और सुरक्षित तब माना जाता है, जब उसे अंतिम ट्रायल के तहत हजारों प्रतिभागियों पर आजमाया जाता है। रूस ने हाल में घोषणा की थी कि वह स्पूतनिक 5 की क्षमता की जांच के लिए इसके अंतिम ट्रायल में 60 हजार लोगों को शामिल करेगा। उसके बाद ही तय होगा कि स्पूतनिक 5 वाकई में सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ कारगर है या नहीं।
लांसेट ने 42 दिनों तक चले दो छोटे लेवल के ह्यूमन ट्रायलों से मिले परिणामों के आधार पर ये दावे किए हैं। इनमें से एक ट्रायल में वैक्सीन के फ्रोजन (जमे हुए) फॉर्मुलेशन का इस्तेमाल किया गया था। वहीं, दूसरे फॉर्मुलेशन में लाइऑफिलाइज (फ्रीज ड्राइड) आधारित सूत्रीकरण का इस्तेमाल किया गया। फ्रोजन फॉर्मुलेशन को बड़े स्केल की वैक्सीन को ध्यान में रखते हुए आजमाया गया। वहीं, फ्रीज-ड्राइड फॉर्मुले को इन इलाकों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया, जहां पहुंचना दुर्गम है और वैक्सीन को दो से आठ डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ज्यादा समय तक स्टोर करने की जरूरत पड़ सकती है। बता दें कि रूस ने ये दोनों प्रकार की वैक्सीन एडिनोवायरस टाइप 26 और एडिनोवायरस टाइप 5 की मदद से तैयार की हैं। अध्ययन में वायरस में इस तरह के बदलाव किए गए हैं कि यह शरीर में जाकर सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन की तरफ फैलता है। लांसेट के शोधकर्ताओं की मानें तो इससे सामान्य सर्दी जुकाम हो सकता है, लेकिन वायरस मानव कोशिकाओं में अपनी कॉपियां नहीं बना सकता। ऐसे में शरीर किसी बीमारी की चपेट में नहीं आता और नए कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी जनरेट कर लेता है।
लांसेट के ये ट्रायल रूस के दो अस्पतालों में किए गए। दोनों परीक्षण ओपन-लेबल और नॉन-रैंडमाइज्ड थे। इसका मतलब है कि प्रतिभागियों को पता था कि उन्हें वैक्सीन दी जाने वाली है। इन प्रतिभागियों की उम्र 18 से 60 साल के बीच थी और ये पूरी तरह स्वस्थ थे। ट्रायल के लिए रजिस्ट्रेशन होने के बाद इन्होंने खुद को आइसोलेट कर लिया था। वैक्सीन लगने के बाद 28 दिनों तक ये लोग अस्पताल में ही रहे थे। पहले चरण के तहत हुए हरेक ट्रायल में दोनों प्रकार की वैक्सीनों का कोम्पोनेंट इन प्रतिभागियों को दिया गया था। नौ-नौ प्रतिभागियों वाले चार समूहों को फ्रोजन और फ्रीज ड्राइड फॉर्मूला आधारित वैक्सीन दी गई।
वहीं, दूसरे चरण में प्रतिभागियों को दोनों वैक्सीनों के फुल डोज दिए गए। पहले दिन मुख्य वैक्सीनेशन को अंजाम दिया गया। इसके बाद 21वें दिन बूस्टर वैक्सीन दी गई। लांसेट ने बताया कि फ्रोजन और फ्रीज ड्राइड वैक्सीन वाले समूहों में 20-20 प्रतिभागी शामिल थे। वैक्सीन से मिलने वाली इम्यूनिटी और नेचुरल इम्यूनिटी में अंतर करने के लिए पत्रिका के शोधकर्ताओं ने कोविड-19 से ठीक हुए 4,817 सामान्य और मध्यम मरीजों के कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा की मदद ली।
जांच में पता चला कि दोनों वैक्सीन फॉर्मुलेशन सुरक्षित हैं और उनके कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ट्रायल के दौरान प्रतिभागियों के इन्जेक्शन वाली जगह पर दर्द, हाइपरथर्मिया, सिरदर्द, एस्थीनिया (कमजोरी या ऊर्जी की कमी), बदन दर्द और जोड़ों में दर्द जैसे सामान्य दुष्प्रभाव देखने को मिले, जिन्हें सहा जा सकता है। उनका कहना है कि ये साइड इफेक्ट अन्य वैक्सीनों में भी दिखाई दिए हैं।