बदन दर्द को आयुर्वेद में अंग-मर्द भी कहा जाता है। किसी बीमारी के लक्षण के रूप में बदन दर्द की समस्या हो सकती है लेकिन बदन दर्द कई बीमारियों के लक्षण या पूरे शरीर में दर्द के रूप में सामने आ सकता है। थकान, बहुत ज्यादा काम करने और असंतुलित आहार के कारण भी बदन दर्द हो सकता है। बदन दर्द के कारण को दूर कर के इस समस्या से राहत पाई जा सकती है।
(और पढ़ें - संतुलित आहार के फायदे)
आयुर्वेद द्वारा अंग-मर्द में दोष की भूमिका और इस समस्या के संपूर्ण उपचार का उल्लेख किया गया है।
अंग-मर्द के लिए आयुर्वेदिक उपचार में स्नेहन (शुद्धिकरण), स्वेदन (पसीना निकालने की विधि), वमन (औषधियों से उल्टी लाने की विधि), विरेचन (दस्त) और रक्तमोक्षण (दूषित खून निकालने की विधि) की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद में बदन दर्द को नियंत्रित करने के लिए बृहती, अरंडी, इला (इलायची), यष्टिमधु (मुलेठी), कंटकारी, बाला, कपिकच्छु, पुनर्नवादि मंडूर, आनंद भैरव रस और वसंत कुसुमाकर औषधि एवं जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है।
(और पढ़ें - खून साफ करने के घरेलू उपाय)
- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से बदन में दर्द - Ayurveda ke anusar Body Pain
- बदन में दर्द का आयुर्वेदिक उपचार - Badan dard ka ayurvedic ilaj
- बदन में दर्द की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Body Pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार बदन में दर्द में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Body Pain kam karne ke liye kya kare kya na kare
- बदन में दर्द की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Badan me dard ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- बदन में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Badan dard ki ayurvedic dawa ke side effects
- बदन में दर्द की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Body Pain ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से बदन में दर्द - Ayurveda ke anusar Body Pain
आयुर्वेद के अनुसार सभी प्रकार के दर्द का कारण वात का बढ़ना है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में अंग-मर्द के प्रमुख कारणों का इस प्रकार उल्लेख किया गया है:
- आमवात (रुमेटाइड आर्थराइटिस): खराब पाचन के कारण आंतों में अमा बनने लगता है। ये अमा शरीर में अलग-अलग कफ वाली जगहों खासतौर पर जोड़ों में जमने लगता है जिसकी वजह से दर्द और असहजता महसूस होने लगती है। जब अमा पूरे शहर में फैल जाता है और शरीर इसे पूरी तरह से सोख लेता है तो बदन दर्द की शुरुआत होने लगती है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए क्या करें)
- संधिवात (ऑस्टियोआर्थराइटिस): जोड़ों में वात के खराब एवं जमने के कारण संधिवात होता है। इसमें जोड़ों में बहुत तेज दर्द और अकड़न रहती है एवं मांसपेशियों की ताकत भी कम होने लगती है।
- ज्वर (बुखार): पाचन अग्नि कमजोर होने के कारण ज्वर या बुखार होता है और बदन दर्द के सबसे सामान्य कारणों में से एक बुखार ही है। ज्वर अपने आप में ही एक रोग या किसी अन्य संक्रमित रोग (जैसे टीबी या खांसी) के लक्षण के रूप में हो सकता है। दोष के आधार पर उचित इलाज निर्धारित किया जाता है।
- वातज पांडु (आयरन की कमी वाला एनीमिया): ये प्रमुख तौर पर पित्त दोष के खराब होने के कारण होता है लेकिन इसमें वात और कफ का असंतुलन भी शामिल है। इस प्रकार आयरन की कमी वाले एनीमिया में त्रिदोष शामिल होते हैं। पित्त के खराब होने का असर रक्त पर भी पड़ता है और इस वजह से त्वचा का रंग पीला एवं फीका भी पड़ने लगता है। (और पढ़ें - त्रिदोष किसे कहते है इसके लक्षण)
किसी अन्य समस्या जैसे कि राइनाइटिस, क्षयज कास (टीबी के कारण होने वाली खांसी), बवासीर और रस धातु के खराब होने के कारण भी बदन दर्द हो सकता है।
बदन में दर्द का आयुर्वेदिक उपचार - Badan dard ka ayurvedic ilaj
अग्निमर्द के कारण के आधार पर के निम्न उपचार की सलाह दी जाती है:
- स्नेहन
- स्नेहन में औषधियों जड़ी बूटियों के साथ तेल से शरीर को बाहरी और अंदरूनी रूप से चिकना किया जाता है। व्यक्ति की प्रकृति के आधार पर स्नेहन के लिए जड़ी बूटियों का चयन किया जाता है।
- तेल मालिश से शरीर को आराम मिलता है और स्नेहपान (घी या तेल पीना) से विभिन्न नाडियों में जमा अमा पाचन मार्ग में आ जाती है जिससे वो आसानी से शरीर से बाहर निकल जाती है।
- बदन दर्द के इलाज में स्नेहन सबसे असरकारी चिकित्सा मानी जाती है। ये वात को साफ, दर्द से राहत और मांसपेशियों एवं जोड़ों में अकड़न को दूर करती है।
- स्नेहन से रक्तप्रवाह भी बेहतर होता है। (और पढ़ें - रक्त प्रवाह बढ़ाने के उपाय)
- स्वेदन
- स्वेदन एक पंचकर्म थेरेपी है जिसमें अलग-अलग तरीकों से पसीना लाया जाता है। इससे शरीर में अकड़न, ठंडक और भारीपन से राहत मिलती है।
- स्नेहन की तरह स्वेदन भी शरीर के ऊतकों में जमा अमा को पतला कर पाचन मार्ग में ले आता है। इसके बाद शुद्धिकरण की प्रक्रिया द्वारा शरीर से अमा को हटाया जाता है।
- प्रमुख तौर पर वात प्रधान रोगों के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- वमन
- पंचकर्म थेरेपी में से एक वमन कर्म भी है। इसमें जड़ी बूटियों और हर्बल मिश्रणों की मदद से उल्टी करवाई जाती है। ये बढ़े हुए कफ और पित्त दोष को हटाकर पेट साफ करता है। (और पढ़ें - पेट साफ करने के तरीके)
- वमन कर्म जठरांत्र मार्ग के ऊपरी हिस्से से अमा को बाहर निकालने में उपयोगी है। इसलिए बदन दर्द से राहत पाने के लिए इसे उत्तम माना जाता है।
- बुखार को बदन दर्द का सबसे सामान्य कारण माना जाता है जिसका इलाज वमन कर्म से किया जा सकता है।
- श्वसन विकारों जैसे कि अस्थमा और बढ़े हुए कफ से संबंधित समस्याओं में भी वमन की सलाह दी जाती है।
- विरेचन
- विरेचन में खराब दोष खासतौर पर पित्त दोष को साफ किया जाता है और गुदा मार्ग के ज़रिए शरीर से अमा को बाहर निकाला जाता है।
- बुखार और आर्थराइटिस के कारण हुए बदन दर्द के इलाज में विरेचन फायदेमंद है।
- विरेचन लंबे समय से हो रहे पीलिया, आंत में दर्द, दमा, त्वचा रोगों, मिर्गी और अन्य पित्त प्रधान रोगों के इलाज में मददगार है। (और पढ़ें - पीलिया का होम्योपैथिक इलाज)
- रक्तमोक्षण
- इस प्रक्रिया में किसी धातु से या इसके बिना शरीर से अशुद्ध रक्त को बाहर निकाला जाता है। रक्तमोक्षण में सूखे करेले, जोंक या गाय के सींग का प्रयोग किया जाता है।
- इस चिकित्सा से शरीर से खराब खून और अमा बाहर निकल जाती है। वात और पित्त रोगों जैसे कि गठिया और सिरदर्द के कारण हुए बदन दर्द को कम करने के लिए प्रमुख तौर पर इस चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
बदन में दर्द की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Body Pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
बदन दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- बृहती
- बृहती का प्रभाव श्वसन, मूत्र और परिसंचरण प्रणाली पर पड़ता है। इसमें वायुनाशक (पेट फूलने से राहत), शक्तिवर्द्धक, कफ निस्सारक (बलगम निकालने वाला), कामोत्तेजक (लिबिडो बढ़ाने वाला), उत्तेजक और संकुचक गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के घरेलू नुस्खे)
- लंबे समय से बुखार होने की स्थिति में बदन दर्द महसूस होता है। बृहती इसके इलाज में उपयोगी है।
- बदन दर्द के अलावा ये सीने में दर्द, एडिमा, खांसी और बलगम बनने से रोकने में भी काम आती है। (और पढ़ें - बलगम का आयुर्वेदिक इलाज)
- बृहती का इस्तेमाल काढ़े या पाउडर के रूप में कर सकते हैं।
- अरंडी
- अरंडी मूत्र, तंत्रिका, स्त्री प्रजनन प्रणाली और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। ये दर्द निवारक और रेचक प्रभाव देती है। ये सूजन और बदन दर्द कम करने में भी मदद करती है।
- सिरदर्द, बुखार, जोड़ों में दर्द और साइटिका के इलाज में अरंडी उपयोगी है। अरंडी को वात विकारों के लिए अमृत कहा जाता है क्योंकि वात के बढ़ने के कारण हुए सभी प्रकार के रोगों को नियंत्रित करने में अरंडी असरकारी है।
- तेल, पेस्ट, अर्क या पुल्टिस के रूप में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
- इला
- उत्तम पाचक होने के कारण इला पाचन, श्वसन, तंत्रिका और परिसंचरण तंत्र पर कार्य करती है।
- ये पेट फूलने से राहत, बलगम निकालने में मदद करती है और प्राकृतिक उत्तेजक के रूप में कार्य करती है।
- इसके अलावा ये बढ़े हुए कफ को भी साफ करती है और खांसी, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और जुकाम को नियंत्रित करने में मदद करती है।
- आप अर्क, पाउडर या दूध के काढ़े के रूप में इला ले सकते हैं।
- यष्टिमधु
- यष्टिमधु उत्सर्जन, पाचन, तंत्रिका, प्रजनन और श्वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें कफ निस्सारक, रेचक, ऊर्जादायक, शामक और शक्तिवर्द्धक गुण होते हैं।
- ये सामान्य कमजोरी, बदन दर्द, सूजन और पेट दर्द को ठीक करने में मदद करती है।
- मुलेठी खून को साफ करती है और अधिकतर वात विकारों के इलाज में इसे उपयोगी माना जाता है। वात विकार के कारण बदन दर्द होना सामान्य बात है।
- दूध के काढ़े, पानी में काढ़ा बनाकर, घी या पाउडर के रूप में मुलेठी ले सकते हैं।
- किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए मुलेठी को दूध के साथ लेने की सलाह दी जाती है।
- कंटकारी
- कंटकारी का असर प्रजनन और श्वसन प्रणाली पर पड़ता है। इसमें पाचक, संकुचक, वायुनाशक और कफ निस्सारक गुण होते हैं।
- ये विभिन्न रोगों जैसे कि बुखार, टीबी और रुमेटाइड आर्थराइटिस के इलाज में उपयोगी है।
- कंटकारी का इस्तेमाल काढ़े, रस या पाउडर के रूप में कर सकते हैं।
- बाला
- बाला परिसंचरण, तंत्रिका, मूत्र, प्रजनन और श्वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, कामोत्तेजक, ऊर्जादायक, उत्तेजक, नसों को आराम देने वाले, शक्तिवर्द्धक और घाव भरने वाले गुण मौजूद हैं।
- ये जड़ी बूटी शरीर खासतौर पर हृदय को मजबूती प्रदान करने में प्रभावी है।
- ये वात को साफ करती है और साइटिका, आर्थराइटिस एवं लंबे समय से होने वाली सूजन का इलाज करती है।
- बाला मांसपेशियों को मजबूती देती है और लगातार होने वाले बुखार के इलाज में मदद करती है। बुखार की स्थिति में बदन दर्द हो सकता है।
- कीमोथेरेपी ले रहे मरीज़ों की ताकत में भी बाला सुधार लाती है।
- बाला को पाउडर, काढ़े या औषधीय तेल के रूप में ले सकते हैं।
- कपिकच्छु
- कपिकच्छु का असर तंत्रिका और प्रजनन प्रणाली पर पड़ता है। इसमें कामोत्तेजक, संकुचक, शक्तिवर्द्धक, ऊर्जादायक और कृमिनाशक गुण होते हैं।
- ये सामान्य कमजोरी, बदन दर्द, नपुंसकता, बदहजमी, एडिमा, बांझपन और बुखार को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
- खराब वात के कारण बदन दर्द हो सकता है और कपिकच्छु इस खराब हुए वात को साफ करने की क्षमता रखती है।
- कपिकच्छु का इस्तेमाल काढ़े, पाउडर या अवलेह के रूप में कर सकते हैं।
बदन दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- पुनर्नवादि मंडूर
- इस औषधि में पुनर्नवा, मंडूर भस्म (आरयन ऑक्साइड को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार की गई भस्म), गोमूत्र, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) और त्रिकटु (तीन कषाय – पिप्पली, शुंथि [सोंठ] एवं मारीच [काली मिर्च] का मिश्रण) जैसी कुछ सामग्रियां मौजूद हैं।
- त्रिफला में मौजूद आंवला आयरन और विटामिन सी का बेहतरीन स्रोत है। गोमूत्र में रोगाणुरोधी, एंटीऑक्सीडेंट और एनीमिया रोकने वाले गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - एनीमिया का आयुर्वेदिक इलाज)
- ये औषधि खराब वात और कफ दोष को साफ करने में मदद करती है।
- ये खून बनने की प्रक्रिया और आयरन के अवशोषण में सुधार लाती है जिस से आयरन की कमी के कारण हुए एनीमिया के इलाज इलाज में मदद मिलती है, एनीमिया को बदन दर्द के सबसे सामान्य कारणों में से एक माना जाता है।
- सिंहनाद गुग्गुल
- सिंहनाद गुग्गुन को त्रिफला, शुद्ध गंधक, शुद्ध गुग्गुल और अरंडी मूल (जड़) से तैयार किया गया है।
- ये पाचन शक्ति में सुधार लाने में मदद करती है और इस प्रकार अमा का पाचन बढ़ता है, परिसंचरण नाडियों की रुकावट और अत्यधिक कफ बनने की समस्या से छुटकारा मिलता है। एक साथ मिलकर ये सभी प्रभाव रुमेटाइड आर्थराइटिस और इससे संबंधित बदन दर्द को नियंत्रित करने में असरकारी है।
- आनंद भैरव रस
- आनंद भैरव रस में शुद्ध हिंगुल (सिंगरिफ), वत्सनाभ, शुंथि (सोंठ), पिप्पली, मारीच और कुछ मात्रा में गलगल एवं नींबू का रस मौजूद है।
- इसमें वायुनाशक, पाचक और संकुचक गुण हैं। बुखार और अपच एवं बुखार के कारण हुए बदन दर्द को नियंत्रित करने में ये औषधि असरकारी है।
- इस औषधि को जीरा या दालचीनी पाउडर के साथ लेने पर दस्त और पेचिश के इलाज में भी मदद मिलती है। (और पढ़ें - पेचिश के घरेलू उपाय)
- वसंत कुसुमाकर
- इस मिश्रण को रौप्य (सिल्वर), वंग (टिन), नाग (तांबा), सुवर्णा (सोना), अभ्रक और प्रवाल (लाल मूंगा) की भस्म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) को चंदन, वासा (अडूसा) और हरीद्रा (हल्दी) में मिलाकर तैयार किया गया है।
- टीबी, वात विकारों और डायबिटीज जैसे रोगों के कारण हुई शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए वसंत कुसुमाकर की सलाह दी जाती है। चूंकि वात दोष के कारण बदन दर्द होना सबसे सामान्य बात है इसलिए इस स्थिति में बदन दर्द को नियंत्रित करने के लिए इस औषधि का इस्तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - कमजोरी दूर करने के घरेलू उपाय)
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व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार बदन में दर्द में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Body Pain kam karne ke liye kya kare kya na kare
क्या करें
- हल्का भोजन लें और दैनिक आहार में जौ, पुराने शालि चावल, मूंग दाल और मसूर की दाल शामिल करें।
- अनार और अंगूर जैसे फल खाएं।
- कुछ समय धूप में बैठें। (और पढ़ें - धूप सेंकने के फायदे)
क्या न करें
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि भूख, प्यास, मल त्याग और पेशाब आदि को रोके नहीं।
- बहुत ज्यादा न खाएं और भोजन के बीच में कुछ समय का अंतराल रखें। (और पढ़ें - खाना खाने का सही समय)
- शारीरिक थकान से बचें। (और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)
बदन में दर्द की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Badan me dard ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
एक चिकित्सकीय अध्ययन में आमवात से ग्रस्त 24 प्रतिभागियों पर बदन दर्द और इससे जुड़े अन्य लक्षणों से राहत पाने में सिंहनाद गुग्गुल और शिव गुग्गुल के प्रभाव की तुलनात्मक जांच की गई। प्रतिभागियों को दो हिस्सों में बांटा गया जिसमें से पहले समूह को सिंहनाद गुग्गुल और दूसरे समूह को शिव गुग्गुल दी गई। दोनों समूह के प्रतिभागियों को 8 सप्ताह तक प्रतिदिन 6 ग्राम की मात्रा में दोनों औषधियां दी गई थीं।
वैसे तो दोनों ही दवाओं से आमवात के लक्षणों में सुधार देखा गया लेकिन सिंहनाद गुग्गुल को बदन दर्द, खाने में अरुचि, सुस्ती एवं भारीपन जैसे लक्षणों और आमवात के इलाज में ज्यादा असरकारी पाया गया।
(और पढ़ें - भूख बढ़ाने का उपाय)
बदन में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Badan dard ki ayurvedic dawa ke side effects
अधिकतर आयुर्वेदिक उपचारों को चिकित्सक की देखरेख और उचित खुराक में लेने पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता है। हालांकि, आयुर्वेदिक इलाज शुरु करने से पहले निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए:
- कमजोर, वृद्ध, बच्चों और हृदय रोगों से ग्रस्त व्यक्ति को वमन कर्म नुकसान पहुंचा सकता है।
- गर्भवती महिलाओं और कमजोर व्यक्ति, वृद्ध, बच्चों में विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है।
- शिशु, गर्भावस्था और मासिक धर्म के दौरान रक्तमोक्षण नहीं करना चाहिए। एनीमिया में भी रक्तमोक्षण ठीक नहीं रहता है।
- किडनी, पित्त वाहिका, मूत्राशय और आंतों में संक्रमण की स्थिति में अरंडी का तेल नुकसानदायक हो सकता है।
- बहुत ज्यादा बलगम होने पर बालो का सेवन नहीं करना चाहिए।
- छाती में बलगम जमने पर कपिकच्छु की सलाह नहीं दी जाती है।
बदन में दर्द की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Body Pain ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
बदन दर्द एक सामान्य समस्या है जो हमारे दैनिक कार्यों को प्रभावित करती है। बदन दर्द का इलाज इसके कारण पर निर्भर करता है। आयुर्वेदिक उपायों और उपचार से न सिर्फ बदन दर्द को दूर किया जाता है बल्कि संपूर्ण सेहत में सुधार और शरीर को मजबूती भी प्रदान की जाती है।
हालांकि, किसी भी चिकित्सा से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करने से दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
(और पढ़ें - बदन दर्द के घरेलू उपाय)
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संदर्भ
- Department of Ayush, Govt. of India. Standard Treatment Guidelines in Ayurveda. Centre council of Indian Medicine.
- Lakshmi Chandra Mishra. Scientific Basis for Ayurvedic Therapies. U.S. Government; [Internet]
- B Ravishankar, VJ Shukla. Indian Systems of Medicine: A Brief Profile. Afr J Tradit Complement Altern Med. 2007; 4(3): 319–337. PMID: 20161896
- Janmejaya Samal. Ayurvedic preparations for the management of Iron Deficiency Anemia: A systematic review. Year : 2016 Volume : 37 Issue : 3 Page : 163-169
- P. K. Gupta. Clinical evaluation of Boswellia serrata (Shallaki) resin in the management of Sandhivata (osteoarthritis). Ayu. 2011 Oct-Dec; 32(4): 478–482. PMID: 22661840
- Department of Ayush, Govt. of India. Standard Treatment Guidelines in Ayurveda. Centre council of Indian Medicine.
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